________________ भूमिका बनाते हैं। अतः स्पष्ट है कि निर्वेद की व्याप्ति और अभिव्यक्ति अत्यंत यशस्वी और प्रभावी है। प्रस्तुत काव्य की भाषा संस्कृत है। अनेक गाथाएँ ऐसी मिलेंगी कि जो सरलता के कारण सहज ही समझमें आ जाती है / उसी प्रकार इस काव्य की शब्द योजना देखकर कविवर के भाषा प्रभुत्व की यथार्थ प्रतीति हमें होती हैं। साथ ही अर्थ गौरव की दृष्टिसे भी रचना प्रशंसनीय है। थोडे शब्दों में भरपूर आशय व्यक्त होने के गुण को साहित्यमें अर्थ गौरव कहते हैं। उपमा अलंकार के उत्कृष्ट उदाहरण देखकर और अर्थ गौरव का गुण पाकर विख्यात संस्कृत कवि कालिदास और भारवि की याद आती है / प्रसिद्ध है उपमा कालिदासस्य, भारवेः अर्थ गौरवम् / प्रस्तुत काव्यमें दोनों के ये दोनों गुण यथार्थ रीति से समाविष्ट है। ऐसे इस श्रेष्ठ काव्य की रचना संवत 2029 में पूर्ण हुई है, किन्तु इसका प्रकाशन दस ग्यारह वर्षों बाद अभी हो रहा है। यह प्रकाशन हिन्दी और गुजराती भाषाओं सहित है / इसलिए संस्कृत भाषा न जाननेवाले सामान्य जनों के लिए भी इसका अवगाहन सहज सुलभ होगा / हर कोई इसके काव्य रस का आस्वादन कर सकेगा और धर्माचरण का उपदेश पाकर धन्य हो सकेगा। ॐ शान्तिः गुरु चरणकमलानुरागी पं. कन्हैयालाल मुनि आभार प्रदर्शन यह लोकाशाह महाकाव्य छपके तैयार होने के पश्चात् समिति के कार्य काओं ने सोचा कि पूज्य गुरुदेव के इस काव्य को भूमिका पूज्य गुरुदेव के सु शिष्य परम विद्वान् शास्त्रवेत्ता, बाल ब्रह्मचारी प. पू. कन्हैयालालजी म. सा. लिख भेजे तो ओर उत्तम हो, ऐसा सोचकर समिति के कार्यवाहकों ने पूज्य म. सा. कन्हैयालालजी को नम्र विनंती की जिसे स्वीकार कर उपरोक्त भूमिका म. सा. ने चातुर्मास के धर्मकरणी में प्रवृत्तिशील होने पर भी अवकाश लेकर आपने अथाक परिश्रम कर लिख भेजी है अतः समिति पूज्य म. सा. कन्हैयालालजी का हार्दिक आभार मानती हैं / अ. श्री. श्वे. स्था. जैन शास्त्रोद्धार समिति