Book Title: Lonkashah Charitam
Author(s): Ghasilalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 15
________________ होती है उसका स्थान स्थानपर विस्तार से वर्णन आया है, तथा इन सब गुणों और लक्षणों से युक्त साधु-जीवन के श्रेष्ठता की प्रशंसा की गयी है। जीव और देहका स्वरूप तथा उनके परस्पर संबंध का विवेचन करते हुए चार्वाकमत, बौद्धमत, नैयायिक और सांख्यमत इत्यादि का खंडन करके जैन सिद्धान्त का तर्कशुद्ध मंडन किया है / इससे कविश्रेष्ठ का अन्य मतों के शास्त्रों का अध्ययन कितना गहरा था इसकी प्रतीति होती है। . हम जानते हैं कि जैन धर्म में सम्यग् ज्ञान-दर्शन-चारित्र का कितना और कैसा सर्वोपरी महत्त्व है / इन तीन रत्नों को अपनाते हुए प्रत्येक जैन का जीवन उच्च बने इस भावना से इन का बारवार वर्णन करते हुए कविराज आचार्य श्री की लेखनी नहीं अघाती / बारबार कहा गया है कि महावीर-वाणी पर श्रद्धा हो तो ये त्रिरत्न प्राप्त हो सकेंगे, लेकिन साथ ही कहा है कि श्रद्धा अंध न हो / श्रद्धा ज्ञान सहित हो और धर्माचार को भी जागृत करें, क्योंकि क्रिया बिना ज्ञान भी अर्थहीन है। विद्वान् वही है, जो क्रियावान् है। ____ यह सारा अनेक उदाहरण, घटना, प्रसंग, उपमा, रूपक आदि द्वारा सरल और मुस्पष्ट किया है। रोचक शैली द्वारा कुतुहल को बढ़ाते हुए संतोष और प्रसन्नता बढशी गयी है। - अहिंसा और दया का महत्त्व भी प्रभावी रूप से रखा गया है / इस के निरूपण के क्रम में आठवें सर्ग में गुणपाल कन्या विषा की कथा दी गयी है, तथा आगे प्यासा वृद्ध और पनिहारिन का प्रसंग दिया गया है। यह प्रसंग तो बहुत ही मार्मिक है। इस प्रसंग द्वारा दया भावना के साथ यह भी सुझाया गया है कि छुआछूत को महत्त्व देकर उच्च नीच का भेद मानना एकदम गलत है। . जिनेन्द्र उपासना के महत्त्व की प्रशंसा स्थान स्थानपर की है और धर्ममार्ग की प्रशंसा करते हुए धार्मिक जीवन के स्वरूप का बहुत ही सुंदर और विस्तृत विवेचन बारहवें सर्ग के प्रारंभ में आया है। यह विवेचन पढ़ते पढ़ते मन आनंदित हो जाता है / कितना सुंदर ! कितना सुस्पष्ट ! धर्माचार के अनेक गुणधर्म, अनेक लक्षण और प्रत्यक्ष आचार सेठ हेमचंद्र, गंगादेवी और लोकचंद्र के जीवन में मौजूद थे ही / श्रद्धेय कविवर आचार्यश्री ने इनका चित्रण करते हुए ध्यान रखा है कि इन तीनों का आदर्श जीवन सब के लिए अनुसरण योग्य महसूस हो। इस तरह प्रस्तुत काव्य ग्रंथ में जैनधर्म-दर्शन-आचार का विवरण गाथा गाथा में भरा पड़ा है / इन में जल्प नहीं, कल्प है; मनोरंजन की कथा नहीं, क्षणभंगुरता की व्यथा है। संसार सुख और चैन नहीं, कर्मबंध की बेचैनी है; सुवर्ण सिंहासन नहीं, अलोकाकाश

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