Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo Author(s): Rishabhdas Mahatma Publisher: Rishabhdas Mahatma View full book textPage 5
________________ कर अर्थात् “महाजन संघ." स्थापन किया और उनके आत्मकल्याणार्थ श्रीमहावीर देवका मन्दिर बनवाकर उसकी प्रतिष्ठा भा करवाई । जिसकी खुशी में स्वामीवात्सल्य भी किया । जिमन के लिये उन्हों को ही आमन्त्रण किया कि जिन्होंने जैन धर्म स्वीकार किया था। उस समय राजपूतों कों मांगनेवाले भाटोंने महाजनसंघ से अरज की कि हम लोग आपके : आश्रित है, आप हमारे मा, बाप और हम आप के बेटाबेटी हैं, अतएव आप के प्रत्येक जमणवार में हम लोक सदैवसे जीमते आये हैं फिर आज के जीमणवार से हम लोगों को दूर क्यों रखे जाते है ? यदि ऐसा होगा तो यह पुराणा सम्बन्ध सदा के लिये तूट जायगा इत्यादि । इस पर महाजनसंघने कहा कि यह स्वामीवात्सल्य हमारे धर्म सम्बन्धी हैं, इस में वे ही सामील हो सकते हैं जो जैन धर्म स्वीकार कर ठीक पालन करते हो। भाटोने कहा कि जब आप लोगोने जैन धर्म को स्वीकार कर लिया हैं तो हम लोग भी जैन धर्म पालन करने को तैयार है, तथापि चिरकोल के संस्कारों को लेकर महाजन संघ' ने उन भाटों को अपनी पंक्ति में जीमना स्वीकार नही किया। इस पर भाट लोगः एकत्र हो कर आचार्य रत्नप्रभसूरि के पवित्र चरणकमलों में जाकर अपनी दुःखगाथा कह सुनाई। परम दयालु आचार्यदेवने महाजन संघ को कहो यदि यह लोग श्री संघ की सेवा और मन्दिरो, उपासरों का यथोचित कार्य करे तो इनका निर्वाह आप को करना अनुचित नही है.। श्री संघ सूरीश्वरजी के इन इसारों को शिरोधार्य कर लिया और एक ऐसी योजना तैयार की कि जिस से उन भाटों के साथ चिरस्थायी सम्बन्ध बना रहे । वह योजना निम्न लिखित थी । भाटों को कहा गया किPage Navigation
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