Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 27
________________ २५ " ओशियों नगरी में भये, उपलदेवकी वार | भाटों से भोजक बन्या, जाणे युग संसार | (न) जब तुम मेवाड़ के सेवगों के लिये कहते हो कि " भोमा तूं भारमल को, कुलने लगायो काट । आदू सेवग छोड़के, लारे लगाया भाट || " इसके प्रतिबाद में मेवाड़ के सेवग कहते हैं कि" भोमां उदयो भांण, धरा राखी मेवाड़ की । देश निकाले भाट, राह लीवी मारवाड़ की | " अर्थात् मारवाड़ के सेवग मेवाड के सेवगों को भाट बतलाते हैं तब मेवाड़ के सेवग मारवाड के सेवगों को भाट बतलाते है यदि इन दोनों का कहना सत्य है तो इस बात में किसी प्रकार का संदेह नहीं कि सेवग जाति भाट एवं अनार्य बहार से आई हुई एक जाति हैं । पूर्वोक्त बातों से निर्विवाद सिद्ध है कि सेवगलोग न तो राजपूतों के पुरोहित थे न ओसवालों के गुरु ही थे । वास्तव में ये लोग अनार्य देश से प्राये हुए भाटों की गिनती में एक जाति है और ओसवालों के घरों में जो बतलावे वह काम करता रहना बदले में ओसवालोंने कई प्रकारकी लागत बाध रखी है कि जिन से सेवगों का निर्वाह हो सके पर ओसवालों के' और सेवगों के ऐसा सम्बन्ध नहीं है कि जिस से एक दूसरा अलग न हो सके अर्थात् यह सम्बन्ध दोनों की मरजी पर ही रह सकता है । आज जो सेवगों का होसला बढ़ रहा है यह ओस

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