Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 32
________________ जाता हो तो एक वर्ष में २५००००००) रुपये विधर्मीयों कों दिये जाते हैं । मन्दिरों का निर्माण करानेवालो का इरादा जनकल्याण करने का था, न कि इस प्रकार आर्थिक संकट के समय इतनी बड़ी रकम केवल मन्दिरों की पूजाई के बदले दिलाके समाज का द्रव्य वरवाद करनेका। (९) यदि कोई जैन भाई साधारण की तनख्वाह लेकर जैन मन्दिरों की प्रजा करे तो न तो इतनी अाशातना होगी, न अन्य देवदेवियोंको जैन मन्दिरों में स्थान मिलेगा, वैकारी की पूकारें भी मिट जायगी और देवद्रव्य या साधारण के प्रतिवर्ष ढाई करोड़ रुपये भी बच जायेंगे । और इसमें कोई हर्ज जैसी बात भी नहीं है कारण मन्दिरों की पूजा करना श्रावकों का खास कर्तव्य ही है। मैं तो यहवात जोर देकर कहता हुँ कि जैन मन्दिरों और तीर्थों पर खास कर जैन ही होना चाहिये। ईसकी बेदरकारी से ही शत्रुजय को टेक्स के ६००००) तथा केशरियाजी का मामला बना है। (१६) जोधपुर बिलाडा, नागोर, कुवेरा, पालो आदि बहुतसे नगरों वह ग्रामों में सेवगों के साथ व्यवहार बन्ध करदिया और उनको त्याग वगेरह नहीं दिया जाता है। इसका अनुकरण प्रत्येक ग्राम नगर में होना चाहिये । कम से कम जिस ग्राम के श्री संघने सेवगों के साथ व्यवहार बन्ध किया उस ग्राम के सेवगों को अन्य ग्रामों में त्याग वगेरह कतई नहीं देना चाहिये । (११) जब सेवग निक्कमें बैठे रहते हैं तब ग्रामों में या दिशावरों में मांगने को निकल जाते हैं और अद्रिक ओसवालों को तंग कर हजारों रुपये बदोर लाते हैं । अब सेवगों को एक पाई देने की भी जरूरत नहीं है। पहिले पूछो कि तुम किस ग्राम के मन्दिर की पूजा करते हो, उस ग्रोम

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