Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 33
________________ के श्री संघ का पत्र लावो । और तुम पूजा विरत पर करते हो या तनख्वाह से, यह पूछने पर आपको क्या साबूती मिलती है । तनख्वहा से मन्दिर पूजता हो तो एक पाई देने की जरूरत नहीं हैं ? (१२) सीरा लापसी के जोमनवार में सेवग सिरो दुबारे सेकने का नाम लेवे तो कुवेरा हरसाला आसावरीवालों की भाफिक सीधा रस्ता बतलादो। (१३) सेवगों को शूद्र समझ राज से कर लगाया जाता था पर ओसवालोंने अपने मंगते समझ बचा दिया :जिसका ही फल है कि आज सेवग ओसवालों के साथ पूर्वोक्त बरताव रख रहे हैं। (१६) जैन मन्दिरों को जंगम स्थावर जायदाद सेवगोंके पास हो, वे श्री संघ को शीघ्र अपने कबजे में करलेना जरूरी है। (१५) ओसवालों ! सेवग गला में सूत का डोर डाले चाहे बड़ा रस्ता डाले यदि वह तुम्हारे कहने माफिक मजूरी कार्य करते रहें तो जैसी तुम रोटी खाते हो वैसी सेवगों को भो खिला दो । जिस मजूरी के ऐवजाने में लागलागन देते हो यदि सेवग मजूरी करने से इन्कार हो तो तुमारे एक पाई भी देने की जरूरत नहीं है। (१६) सेवगोंने गला में सूत का डोर करीबन २५-३० वर्षो से डाला हैं पर फिर भी उन्होंने एक बड़ी भारी भूल की कि सेवगनियों का गला शून्य रखा । सेवगनिये आसवालों के घरों में रसोई जीमती हैं और उनके हाथों की कच्ची रसोई सेवग खातेपीते हैं। यदि ओसवालों के वहाँ कची रसोई जीमने में सेवगनियों प्रष्ट हो गई तो उनके हाथकी कश्ची रसोई

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