________________ 'धन्यवाद AURA मा श्रीमान मिश्रीमलजी जैन। आपकी ओर से प्रका " जैनमन्दिरों के पुजारी सेवगों की काली करतूतें" ना किताब एक सज्जन द्वारा अाज मरे हस्तगत हुई जिसको श्रा पान्त पढ़ने से ज्ञात हुआ कि आप केवल ओसवाल समाज ही नहीं पा जैन समाज के शुभचिन्तक हैं और आपका लिग अक्षर अक्षर सत्य भी है इस भारत में ओसवाल जैसी न समाज शायद ही होगा। कि जो सेवग लोग ओसवाल ही नहीं पर जैनधर्म और जैन धर्म के पूज्यपुरुषों की भ निंदा करती हैं उनको भी आज करोड़ों रुपये खुले दिल से / संकोच दिया करते हैं और सेवगों जैसी कोई कृतन्नी कौम है कि जिनाका लूणपाणी खाते पीते हैं उनके ही अवगुण बोले और निंदा करे ? परन्तु आपने प्रस्तुत किताब लिए ओसवाल जाति पर ठोक प्रकाश डाला यानि जागृत करी है। में आपने सेवागों को भी हित शिक्षा दी है वह सेवगों के लिये कम लाभ दायिक नहीं हैं। यदि सेवग लोग उन पर गौर : उनका पतन शीघ्र ही रुक जावे और जो सेवग जाति पराधी की जंजीरों में दुःख का अनुभव कर रही है उससे भी मुक्त जाय / खैर आपका तो अभिप्राय सुन्दर और शुभ है भले मा न माने उनकी मरजी की बात है पर मैं तो इस सेवा के / आपको धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता हूँ। RAMAN भवदीय महात्मा रिषभदा