Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 29
________________ बेयोलीस बावन चार बारहा बहुत्तर | आउट चोट पांच पन्द्रह एकवीस || नैव नैव चर्डेदह रयण दिन । चाहाड़ जपे अभय भृंव । गुरु मुख प्रमाण हित्याणसु । ऐते इच्छ करत तुंव ॥ १ ॥ सेवग लोग ओसवालों के लग्न-शोदी में ढोल बजाई ( त्याग ) के रूपये लेते हैं । उस महामंगलिक समय पर यह कृपया बोलते हैं और इस कवित्त का अर्थ सेवग ईस मुजब करते हैं । २७ मुनिवरों के गुण, ७ नय, ८ कर्म, १८ पापस्थान, ३० महामोहनी कर्मबन्ध के स्थान, ६ काया, ६ लेश्या, ३६ उत्तराध्यान के अध्ययन, ३ गुप्ति, १३ काठिया ३३ गुरु आशातना, ४२ मुनिवरों के गौचरी के दोष, ५२ अनाचार, ४ धर्म, १२ भावना, ७२ तीन काल के तीर्थंकर, साढेतीन करोड़ रोमराय, ६४ इन्द्र, ५ प्रमाद, २१ सबला दोष, ९ तत्त्व, ९ निधान और १४ रत्न । पाठकवर्ग इन अपठित सेवगों की विद्वत्ता की ओर जरा ध्यान लगा कर देखिये कि लग्न जैसे मंगलिक प्रसंग पर शुभ, सुख, सौभाग्यादि की आशीष दी जाती है जिस के बदले में आठ कर्म, अठारा पाप, बावन अनाचार, तेरह काठीया आदि का क्या सम्बन्ध है ? इस को एक बच्चा भी समझ सकता है कि बिना अज्ञानियों के ऐसे शब्द कौन उच्चारण पर हमारे ओसवाल भाईयों को इन बातों की परवाह ही कर सकते हैं ? क्यों ? आजपर्यन्त किसीने यहांतक ही नहीं पूछा कि ऐसे मङ्गलिक समय ' तीनतेरह तेतीसा ' क्यों बोला जाता है ? वास्तव में ओसवाल समाज के तीनतेरह एवं तेतीसा करवानेवाला यह छप्पया ही हैं । यह कवित प्राचीन नहीं करिबन १०० - १५० वर्षोसे प्रचलित हुआ हैं । इस का

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