Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 11
________________ (२) सेवगों को जीमने को पीतल की थाली दी जाती थी और वे अपनो थाली मांज के साफ कर लेते थे तथा सेवगनियों ओसवालों की सब थालिये मांजती थी। अब सेवग पीतलकी थाली में जीमते हैं पर वह झूठी थाली रखके चले जाते हैं। यह कितना अन्याय ! बहुत से ग्रामड़ों __जो अब पंचायती से लिखत हो गये हैं कि सेवग को कांसी को थाली न दी जाय और पीतल की थाली दी जाय तो पहले शर्त कर ली जाय की तुम्हारी थाली तुमको मांजनो होंगी। (३) सेवगों के हाथ की रोटी ओसवाल नहीं खाते थे अब सेवगनीए ओसवालो के घरों में रसोई तक करने लग गई है और जिन्ह सेवगों के हाथ की रोटी ओसवाल नहीं खातेथे वेही सेवग आज ओसवालों के वहां कची रसाई जिमने में शरमाते है। (४) जैन मन्दिरों के मूल गम्भारा में प्रवेश करना सेवगों को अधिकार नहीं था । आज वे प्रभु को पक्षाल तक कराने लग गये हैं। फिर भी दिगम्बरों में यह रिवाज है कि नौकर पूजारो मूल गम्भारा में नहीं जाते हैं वे श्रावक स्वयं प्रभुपूजा-प्रक्षाल करवाते हैं। (५ ) जैन धर्म पालन करने को शर्त. पर भाटों को भोजक व सेवग बना के हजारों लाो रुपये लग्नशादी में दिये जारहे है। आज वे जैन धर्म के कट्टर शत्रु होने पर भी जैनों पर वह टैक्स वसा का तैसा बना हुआ है। सेवग लोग कुण्डोपन्थी और लिंगोपासक होने पर भी जैनो पर दम जगा रहे है । जैन मन्दिरों में मनमाना व्यवहार

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