Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 20
________________ पूजा कर मात्र एक शिवलिंग वरज के सब तीर्थ और मन्दिरो की पूजा का अधिकार मगविप्रो को दे दिया अर्थात् ऊस समय भारतीय सब ब्राह्मण तीर्थ व मन्दिर पूजने में अयोग्य व भ्रष्ट समझे गये थे इत्यादि मनःकल्पित गप्पो से थोथा पोथा भर मारा है। इन मगों को पूछा जाय कि श्री कृष्ण के पहेला भी भारत में सूर्य के मन्दिर और सूर्योपासक सूर्यवंशी विद्यमान थे तो क्या तुम्हारी मान्यता से तुम अनार्यो से भी भारतीय ब्राह्मण पतित हो गये थे कि सूर्य की पूजा के लिये शाकद्वीप से अनार्य मगों कों बुलना पडा ?। अरे मगो! जरा आंख बिचके विचारो। तुम्हारी इन गप्पों को इस सुधारा हुआ जमाना में कौन मानेगें कि बिचारा निरपराधी एक गुरुड पक्षी पर अठारो करोड़ निर्दय मग बैठ गये और पक्षी जीवत रह गया ? श्रीकृष्णने कोशी, मथुरा, प्रयाग, अयोध्या और द्वारकादि सब तीर्थ और मन्दिरों की प्रजा का अधिकार तुम को दे दिया तब भारतीय ब्राह्मणों का क्या हाल हुआ होगा ? पर आज भारतीय ब्राह्मणों की विस्तृत संख्या और प्रायः सव तीर्थ व मन्दिरों की पूजा उन के अधिकार में है और आज वे सर्वत्र पूजा-सत्कार पा रहे हैं तब तुम्हारा हाथ में डपोल शंक्ख और आटा की चरी रही कि पोसवालों के घरों से आटा मांग लाभो । वह भी खूब तिरस्कार के साथ। क्यों रे भाटों तुम किस समय और किस प्रकार से भ्रष्ट हुए कि तुमारे अधिकार से सब तीर्थ व मन्दिरों की सेवा-पूजा चली गई ? और तुप को ओसवालों की चाकरी ही नहीं पर कमीनपने के कार्य करना पड़ा । अरे सेवगों ! गप्पे की भी कुछ हद होती है । क्या तुम को यह विश्वास है कि इस सभ्यता

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