Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 24
________________ २२ ( २ ) भारतीय ब्राह्मण तुमको चोकामें क्यों नहीं आने देते हैं अर्थात् तुमको चोका के बहार बेठा के उपर से रोटी क्यों डालते हैं ? ( ३ ) यदि तुम ब्राह्मण हो तो तुमारे अन्दर ब्राह्मणपने के क्या लक्षण है और तुम शुद्रपने के कार्य क्यों करते हो ? ( ४ ) आचार्य रत्नप्रभसूरिने सबसे पहले उपकेशपुर ( ओशियों) में क्षत्रीय, ब्राह्मण और वैश्यों की शुद्धि कर सब को जैन बनाए और महाजन वंश स्थापन किया उससमयसे आज पर्यन्त तुम मंगते के मंगते कैसे रह गये ? तुम्हारे अन्दर क्या कलंक था ? तुम यह भी नहीं कह सकते हो कि हमारे पूर्वजोंने जैन धर्म स्वीकार नहीं किया कारण तुमारे वंशपरम्परा से जैनसंघ, जैनमन्दिर, जैनाचार्यों की सेव- चाकरी करते आये और जैनधर्म के सब वसुलों को पालते आये हो । इस विषय में निम्न लिखित दोहा चिरकाल से प्रचलित है। 46 राजपूतों के चारण भाट, मेसरियों के जागा । ओसवालों के मंगतासेवग, तीनों लारे लागा ॥ " ( ५ ) यदि तुम राजपूतों के पुरोहित ही थे तो भोजक और सेवग कैसे कहलाये ? राजपूतों के पुरोहित आज भारतमें मोजूद हैं उनका अच्छा आदरसत्कार और बहुतसों को जागीरियों ग्राम व भूमि प्राप्त है तो तुम ओसवालों के मंग और कमीनपना के काम कैसे करने लग गये ? क्या आज तुमको कहा ही पर पुरोहित मानते हैं ? ( ६ ) यदि तुम ओसवालों के गुरु थे तो फिर ओसवालों के घरोंमें नाइ और ढोलीयों की पंक्तिमें काम क्यों

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