Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 19
________________ १७ को न तो ब्राह्मण माना है और न ब्राह्मणत्व का इन के साथ व्यवहार ही रखते हैं । आगे चल कर कवि तेजने लिखा है कि शाखद्वीप का राजा मेगातीथी जो भगवान ऋषभदेव के पिता नाभिराजा के काका था जिन के गुरु मग चित्र थे । इन निंदकों का अभिप्राय यह है कि हम केवल प्रोसवालों के ही गुरु नही पर जैनीयों के परम पूजनीय तीर्थंकर ऋषभदेव के भी गुरु हैं । यदि सेवगों से पूछा जाय कि भगवान ऋषभदेव किस समय हुए और मग विप्रों को सूर्यने किस समय पैदा किया ? इन दोनों के समय में असंख्य वर्षो का अन्तर है । भगवान ऋषभदेव के समय मग विप्रो का जन्म भी नहीं हुआ था । इस हालत में यह निंदक बिलकुल निराधार गप्पे ठोकने में नहीं शरमाते हैं । इन कृतघ्नीयों को अन्न-जल देने का यह फल हुआ कि जो मंगते थे वे आज गुरु बनने को तैयार हो रहे है । धिक्कार है उन ओसवालों कों और जैनियों कों कि इन निंदकों कों अपने द्वार पर चडने देते हैं । इससे तो बेतर है कि गायों कुत्तों का पालन करे । इन भाटोंने केवल ओसवालों की ही नहीं पर तमाम भारतीय ब्राह्मणो की भी भरपेट निंदा की है। आगे कवि तेज. लिखते है कि श्री कृष्ण का पुत्र साम्बकुमार के शरीर में कुष्ट का रोग हुआ तब उसने सूर्य की आराधना कि जिस से आरोग्य हुआ । प्रत्युपकार में ऊसने सूर्य का मंदिर बनाया पर उस मन्दिर की सेवा-पूजा करनेवाला अखिल भारत में कोई भी ब्राह्मण न था तब शाकद्वीप से अठारा (कोटी) मग विप्रों के कुटुम्ब को एक निरापराधी गुरुड पर बैठा के भारत में लाना पड़ा। इतना ही नही पर श्री कृष्णने ऊन मंगों की २

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