Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 15
________________ १३ है और कहाँ २ पर तो वे अपना हक्क तक जमा लिया है । गामड़ों में तो क्या पर कई तीर्थों पर जहाँ मुनीम गुमास्ता रहते हैं यहाँ भी चाबियों सेवक के पास रहती है, यह कितना अन्धेर ? जब दर्शनार्थी यात्रु आते हैं तब चाबियों के लिये सेवको को ढूंढना पड़ता है, इसी कारण बहुत से मन्दिरों से सेवकों को हटा दिया या चाबियों छीन ली है, वास्तव में सब जगह ऐसा होना चाहिये । (१९) जैन मन्दिरों के पोछे जंगम और स्थावर जायदाद तथा राजसे मिली हुई भूमि ( खेत भेरादि ) आज कई वर्षो से उनकी आमंद सेवग खा रहे हैं । आज तनख्वाह से मन्दिर पूजने पर या मन्दिरों की सेवा पूजा छीड़ देने पर भी वे अपना हक बताते हैं । मेवाड़ादि प्रदेशों में तो सेवगोंने अपना हक साबित करने को राज में दावा भी पेश करदिया हैं | क्या जैनों के नशों में खून: है कि मन्दिरों की मिली हुई भूमि इस प्रकार पाखण्डियों के हाथ से बचा कर देवद्रव्य का रक्षण कर सके ? मुकदमाबाजी में सेवक कुठे हो चुके हैं और जैनियों का हक साबित रहा । (२०) जैन मन्दिरों की सेवा पूजा के बदले ही त्याग सीख विदा दी जाती है। आज सेवा पूजा के बदले तनख्वाह देनेपर या पूजा सेवा छोड़ देनेपर भी त्यागादि के लाखों रुपये दे कर इन मंगतों का होसला बडाया जो रहा है क्या ओसवाल समाज इस पर तनक भी विचार करेंगे कि हम सर्प को दूध क्यों पिलाते हैं ? (२१) यदि सेवक शाकद्वीपी ब्राह्मण हैं वे शिवलिंग या विष्णुधर्मोपासक हैं तो फिर इनके साथ जैनियों का क्या सम्बन्ध रहा ? जैसे भारतीय ब्राह्मणों के साथ व्यवहार है

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