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कर रहे है । इतने पर भी जैन समाज की निद्रा दूर नही होती हैं, यह कितनी शोचनीय दशा हैं।
(६ ) सेवग लोग ओसवालों के घरों से खीच-खड़ी रोटी मांग के सदैव ले जाया करते थे । आज नगरों में आटाकी चिवटी मांग ले जाते है । हां गांवडों में खीचखाटा अवश्य मांग लाते है।
(७) न्याति जीमणवारों में महाजन जोम लेने के बाद नाई सेवक एक ही पंक्ति में जीमते और सब काम किया करते थे आज सेवक महाजनों की पंक्ति में जीमने लग गये हैं।
(८) कीसी सेवक के गला में जीनेउ नहीं थी, हाल २५-३० वर्षों से भाट कर्तबी ब्राह्मण बनने के लिये जीनेउ धारण करी है, पर भारतीय ब्राह्मण तो सेवको को अपने चोका में नहीं आने देते हैं अर्थात् चोको बहार बैठा के उपरसे रोटी डाल देते है।
(९) शुभ मङ्गलिक कार्यों के समय दक्षिणावृत शंक्ख बजाया जाता था उसके अभाव आज डपोल शंख बजा कर खुद डपोल बन गये । उस नकली शंखों को जैनाचार्योने मन्दिर के मूल दरवाजा के पास गढवा दिया कि आइन्दा से कोई ऐसा डपोल शंख न बजावे, पर आज तो सेवकोने पुनः वही डपोल शंख बजाना शुरू कर दिया । ओसवालों को पुच्छने की फुरस्त ही नहीं हैं।
(१०) सेवक ओसवालों के मंगते जाजम के किनारे जूत्तौं की जगह खडे रहते थे वे ही प्राज ओसवालों के शिर पर तिलक करने को तैयार हो गये है। अरे ! ओसवालों जरो शोचो कि जिस के घर पर न्यात या संघ पदार्पण