Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 7
________________ (१) प्रत्येक घरसे: महोजन तुमको सदैव एक एक रोटी देता रहेगा कि तुम्हारा निर्वाह होगा । (२) महाजनों के न्याति जाति जीमणवारों में तुम सबको जीमा देंगे। (३) महाजनों के वहाँ लग्न शादी में ढोल बजाई (त्याग) के रूपये तुमको देंगे जो पहले ढोलियों को दिये जाते थे जिससे तुम्हारा अन्य खर्च का निर्वाह होगा। (४) पर्व त्याहारों में महाजनों के वहाँ मिष्टान भोजन बनेगा वह प्रत्येक घर से थोडा थोडा तुमको भी दिया जायगा, जो प्रत्येक घरोंसे तुम लोग मांग के ले जाते रहोगे। (५) जैन मन्दिरों में फल, फूल, नैवेद्य, और अक्षत अर्पण किया जाता है वह सब तुम को मिलेगा। जो पहिले मन्दिरों के उपर 'बलपीठ' पर रख दिया जाता था जिसको कौवादि पक्षी भक्षण करते थे। इत्यादि. महाजन संघने उन भाटों को कहा कि तुम्हारे लिये यद स्कीम है। यदि तुम लोग महाजन संघ की तथा जैन मन्दिरों वह उपासरा और जैन मुनियों की सेवाभक्ति और कार्य दिलोंजानसे करते रहोगे तो महाजनसंघ तुम्हारी अच्छी खातरी रखेंगे। इन दोनों प्रकार की शर्तों को भाट लोगोंने सहर्ष स्वीकार करली तब महाजनसंघ जीम लेने के बाद नाई वगेरह जीमते हैं उनकी पंक्तिमें भाटों को भी भोजन करवा दिया। उसी दिनसे भाट भोजक कहलाये। भोजकोंने महाजन संघ की अच्छी तरहसे टहल बन्दगी अर्थात् सेवा. चाकरी करके उन के हृदय में स्थान प्राप्त कर लिया। महा. जनोंने भी भोजकों को खूब अपनाया। करिबन ३० वर्षों तक तो पूर्वोक्त शर्तोका ठीक तौर से पालन होता रहा ।

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