Book Title: Lati Samhita
Author(s): Manikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti
Publisher: Manikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 13
________________ (१२) विशेष स्वरूप नहीं बतलाया गया जिनके कथनकी 'वक्ष्ये । पदके द्वारा पंचाध्यायीमें प्रतिज्ञा की गई है, और न इस पदमें किसी हृदयस्थ या करस्थ दूसरे ग्रन्थका नाम ही लिया है जिसके साथ उस स्वरूप कथनकी प्रतिज्ञा-शृंखलाको जोड़ा जा सकता । ऐसी हालतमें यहाँ प्रत्येक ग्रन्थका • अपना पाठ उसके अनुकूल है और उसे ग्रन्थकर्ताकी ही कृति समझना चाहिये। यहां नमूनेके तौर पर लाटीसंहिताके कुछ ऐसे पद्य भी उचित जानकर उद्धृत किए जाते हैं जो पञ्चाध्यायीमें नहीं हैं: ननु या प्रतिमा प्रोक्ता दर्शनाख्या तदादिमा। जैनांनां सास्ति सर्वेषामर्थादवतिनामपि ।। १४४ ॥ मैवं सति तथा तुर्यगुणस्थानस्य शून्यता। नूनं दृक्प्रतिमा यस्माद् गुणे पंचमके मता ॥ १४५ ॥ तृतीयसर्गः । ननु व्रतप्रतिमायामेतत्सामायिकं व्रतं । तदेवात्र तृतीयायां प्रतिमायां तु किं पुनः ॥ ४ ॥ सत्यं किंतु विशेषोऽस्ति प्रसिद्धः परमागमे । सातिचारं तु तत्रस्यादत्रातीचारवर्जितं ॥५॥ किं च तत्र त्रिकालस्य नियमो नास्ति देहिनां । अत्र त्रिकालनियमो मुनेर्मूलगुणादिवत् ॥ ६ ॥ तत्र हेतुवशात्क्वापि कुर्यात्कुर्यान्न वा क्वचित् । सातिचारव्रतत्वाद्वा तथापि न व्रतक्षतिः ॥ ७ ॥ अनावश्यं त्रिकालेऽपि कार्य सामायिकं च यत् । . अन्यथा व्रतहानिः स्यादतीचारस्य का कथा ॥ ८॥ अन्यत्राप्येवमित्यादि यावदेकादश स्थितिः । ब्रतान्येव विशिष्यन्ते नार्थादर्थातरं क्वचित् ॥ ९॥

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