Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 4
________________ पूर्व स्वर फलताएँ संयोग से नहीं मिलतीं । सफलता समर्पण चाहती है। हर सफल व्यक्ति का जीवन-महल श्रम और निष्ठा की नींव पर ही टिका होता है । जो व्यक्ति नाकामयाब रहते हैं, उनका जीवन समंदर में भटकती हुई किश्ती की तरह होता है, जो बिना लक्ष्य के पानी के थपेड़ों के बीच अपने वजूद को बचाने के लिए विवश होती है । हमारा अस्तित्व उस किश्ती की तरह बनकर न रह जाए, हम अपना एक लक्ष्य निर्धारित करें और उसे पाने के लिए दिलो-जान से जुट जाएँ । यही पूज्यश्री चंद्रप्रभजी की पावन - प्रेरणा है – लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ । प्रख्यात चिंतक और जीवनद्रष्टा पूज्यश्री चंद्रप्रभजी का साहित्य विपुल है, शब्द की दृष्टि से ही नहीं, अर्थ के नजरिये से भी । अर्थ की गहराइयों से लिपटा हर शब्द सीधा हृदय पर दस्तक देता है और व्यक्ति को सोचने के लिए विवश करता है । पूज्यश्री का न भाषा के प्रति आग्रह है, न पंथ विशेष के लिए दुराग्रह और न ही वैचारिक स्तर पर कोई पूर्वाग्रह । वे केवल जीवन देखते हैं और देखते हैं मानवीय चेतना की हर संभावित ऊँचाई को । पूज्यप्रवर अपने उद्बोधनों के माध्यम से केवल राह ही नहीं दिखाते, बल्कि राह की कठिनाइयों और अड़चनों से भी वाकिफ़ कराते हैं । उनकी प्रेरणा लक्ष्य-निर्धारण के बाद पुरुषार्थ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वे हर उस आयाम को हमें सौंपना चाहते हैं, जो हमें मंज़िल के और करीब ले जाने के लिए सुगमता दे । प्रथम चरण में वे कहते हैं कि व्यक्ति अपने मन के बोझ को उतार फेंके । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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