Book Title: Laghu Dandak Ka Thokda
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 7
________________ [४] किये हुए शक्ति-विशेष से वैक्रियशरीर धारण कर लेते हैं. ____३ चतुर्दशपूर्वधारी मुनि अन्य (महाविदेह) क्षेत्रमें वर्तमान तीर्थंकर से अपना संदेह निवारण करने के लिए अथवा उनका ऐश्वर्य देखने के लिए जब उक्त क्षेत्र को जाना चाहते हैं तब लब्धिविशेष से एक हाथ प्रमाण अतिविशुद्धस्फटिक के समान निर्मल जो शरीर धारण करते हैं, उस शरीरको आहारकशरीर कहते हैं ४ तेजःपुद्गलोंसे बना हुआ शरीर तैजस कहलाता है, इस शरीरकी उष्णतासे खाये हुए अन्न का पाचन होता है और कोई कोई तपस्वी जो क्रोध से तेजोलेश्या के द्वारा औरों को नुकशान पहुँचाता है तथा प्रसन्न होकर शीतलेश्या के द्वारा फायदा पहुंचाता है सो इसी तेजःशरीर के प्रभाव से समझना चाहिये. अर्थात् आहार के पाक का हेतु तथा तेजोलेश्या और शीतलेश्या के निर्गमन का हेतु जो शरीर, वह तैजस शरीर कहलाता है, जिस कर्म के उदय से ऐसे शरीर की प्राप्ति होती है उसे तैजसशरीर कहते हैं. ५ कर्मो का बना हुआ शरीर कार्मण कहलाता है, जीव के प्रदेशोंके साथ लगे हुए आठ प्रकारके कर्म

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