Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 7
________________ प्राथमिक उद्योतनसूरि (७७९ ई० ) कृत प्राकृत कुवलयमालाकहा लगभग ६० वर्ष पूर्व भारतीय विद्या के मनीषियों की जानकारी में आयी थी। उसके बाद से अनेक भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ। यद्यपि स्व० डा० आदिनाथ नेमिनाथ, उपाध्ये द्वारा कुवलयमाला का समालोचनात्मक संस्करण १९५९ ई० में तथा प्रस्तावना आदि १९७७ में प्रकाशित हुए तथापि इसके पूर्व ही अनेक विद्वानों ने कुछेक महत्त्वपूर्ण पक्षों पर निबन्ध लिख कर इस ग्रन्थ की महत्ता की ओर विशेष ध्यान आकृष्ट किया था। अब तक कुवलयमाला पर जो कार्य हुआ है उसकी एक पूरी सूची इस ग्रन्थ के अन्त में दो है। कुवलयमालाकहा की सांस्कृतिक सामग्री का दिग्दर्शन स्व० डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने अपने ‘ए कल्चरल नोट आन द कुवलयमाला,' जो डा० उपाध्ये द्वारा सम्पादित कुवलयमाला के द्वितीय भाग में छपा है, में किया था। इससे ग्रन्थ की सांस्कृतिक सामग्री की महत्ता और उपयोगिता का पता चलता है। भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से उस समग्र सामग्री का विस्तृत, तुलनात्मक और समालोचनात्मक विवेचन अत्यन्त आवश्यक था। पिछले लगभग १० वर्षों के अध्ययन-अनुसन्धान द्वारा तैयार किया गया प्रस्तुत ग्रन्थ इस आवश्यकता की पूर्ति करेगा। भारतीय विद्या के मनीषी डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने 'पाणिनिकालीन भारतवर्ष' 'हर्षचरित-एक सांस्कृतिक अध्ययन' आदि संस्कृत ग्रन्थों के सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत करके सर्व प्रथम विद्वानों के समक्ष सप्रमाण रूप से इस तथ्य को प्रस्तुत किया कि भारत के सांस्कृतिक इतिहास के निर्माण के लिए प्राचीन साहित्य में प्रचुर और अप्रतिम सामग्री उपलब्ध है। उनके बाद कई अन्य संस्कृत ग्रन्थों के सांस्कृतिक अध्ययन भी प्रकाश में आये हैं। संस्कृत जैन साहित्य में सांस्कृतिक अध्ययन का प्रारम्भ डा० गोकुलचन्द्र जैन के सोमदेवसूरिकृत 'यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन' से होता है। इस प्रकार के अध्ययन के लिए यह एक आधारभूत ग्रन्थ है। प्राचीन भारतीय साहित्य के ग्रन्थ विशेष के सांस्कृतिक अध्ययन की परम्परा में कुवलयमाला का यह सांस्कृतिक विवेचन एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में है। प्राकृत ग्रन्थ का यह पहला सांस्कृतिक अध्ययन है, जो भारतीय साहित्य, इतिहास व पुरातत्त्व के विभिन्न साक्ष्यों के प्ररिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया है। महाकवि बाण के ग्रन्थ गुप्तकाल की भारतीय संस्कृति के उजागर दस्तावेज़ हैं। प्राचार्य सोमदेव का यशस्तिलक १०वीं शताब्दी के भारत की

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