Book Title: Kundakundacharya ke Tin Ratna
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 9
________________ ४ आत्माका शुद्धस्वरूप-स्वयम्भू ५६ । सर्वज्ञता ५७ । सर्वगतता ५८॥ __ ज्ञायकता ५९ । बन्धरहितता ६० । पारमार्थिक सुखरूपता ६० । ५ माग-दर्शन, ज्ञान, चारित्र ६२। आस्रव और संवर ६२ । निर्जरा ६३ । चारित्र ६४ । संन्यास ६६ । मूल गुण ६७ । अहिंसा ६८। अपरिग्रह ६८ । शास्त्रज्ञान ७० । सेवाभक्ति ७० । विनय ७२ । पारमार्थिक दृष्टिबिन्दु १ प्रास्ताविक-दो दृष्टियाँ ७४ । ज्ञान और आचरण ७५ । २ जीव-मिथ्यादृष्टि ७५ । आत्मा-अनात्माका विवेक ७६ । ३ कर्ता और कर्म-कर्मबन्धका प्रकार ७७ । कर्मबन्धके कारण ७८ । पारमार्थिक दृष्टि ७९ . पुण्य-पाप-शुभाशुभ कर्म दोनों अशुद्ध ८० । शुद्ध कर्म ८० । ५ आस्रव-ज्ञानी और बन्ध ८१ । ६ संवर-सच्चा संवर ८२ । ७ निर्जरा-ज्ञानी और भोग ८३ । सम्यग्दृष्टिकी व्याख्या ८५ । ८ बन्ध-बन्धका कारण ८६ । पारमार्थिक दृष्टि ८८ । आत्मा बन्धका कर्ता नहीं ८९ । ९ मोक्ष-विवेक ९१ । अमृतकुम्भ ९१ । १० सर्वविशुद्ध ज्ञान-आत्माके कर्तृत्वका प्रकार ९२ । आत्मा सर्वथा अकर्ता नहीं ९४ । सांख्यवादीका समाधान ९५ । क्षणिकवादीको उत्तर ९६ । आत्मा परद्रव्यका ज्ञाता भी नहीं ९६ । आत्मामें रागादि नहीं है ९७ । अज्ञान ९९ । सच्चा मोक्षमार्ग ९९ । सुभाषित-१०॥ शब्दसूची-१०९

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