Book Title: Kundakundacharya ke Tin Ratna
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 7
________________ मूल लेखकको सूचना इस पुस्तकके तैयार करने में परमश्रुत-प्रभावकमण्डल बम्बईसे प्रकाशित समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकायके संस्करणोंका उपयोग किया गया है। अनुवादमें पैराग्राफके अन्तमें दिये गये अंक भी इन्हीं संस्करणों के हैं। इस पुस्तकके उपोद्घात तथा पादटिप्पण लिखनेमें डॉ. आ० ने० उपाध्याय लिखित प्रवचनसारकी प्रस्तावनाका और पण्डित सुखलालजी कृत तत्त्वार्थाधिगम सूत्रके अनुवादका मुख्यरूपसे उपयोग किया है। अतः इनमें चर्चित विषयोंकी जानकारीके लिए पाठकको उक्त ग्रन्थ देखना चाहिए। .. जैसा कि मैंने उपोद्घातमें लिखा है कि श्रीकुन्दकुन्दाचार्य अपने तीनों ग्रन्थोंमें यह मानकर चले हैं कि उनका पाठक जैन परिभाषा और जैन सिद्धान्तोंका पूरा-पूरा जानकार है । उनका उद्देश्य पाठकको प्राथमिक जैन परिभाषा या जैन सिद्धान्तका ज्ञान कराना नहीं है किन्तु जैन सिद्धान्तके अन्तिम निष्कर्षोंकी चर्चा करना है। इस अनुवादमें अजैन पाठक या प्राथमिक जैन वाचकके लिए उपयोगी टिप्पण लगाना अशक्य-सा लगा, अतः ऐसे पाठकोंको इस ग्रन्थमाला [ पूजाँ भाई जैन ग्रन्थमाला ] में प्रकाशित 'भगवान् महावीरके अन्तिम उपदेश' पुस्तक बांच लेना या पासमें रखना उचित होगा।

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