Book Title: Kshamadan Diwakar Chitrakatha 001 Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 9
________________ क्षमादान दूसरे दिन प्रातः सभी व्यापारी राज सभा में उपस्थित हुए। 10000 व्यापारियों ने बहुमूल्य वस्तुयें राजा को भेंट की। उदायन ने उनसे कहा आप हमारे राज्य में निर्भीक होकर व्यापार कर सकते हैं। धर्मसार ने चमकते हुए सुन्दर मोतियों का हार निकाल कर महारानी को भेंट किया। महारानी, अपनी मातृभूमि की ओर से यह भेंट स्वीकार करें। महाराज! हम मगध देश के रहने वाले हैं। आपके देश में व्यापार करने की आज्ञा चाहते हैं। हम आपके लिये विभिन्न देशों से कुछ वस्तुएँ उपहार लाये हैं। 40000 अण्णा Jai महारानी प्रभादेवी मगध के राजा चेटक की पुत्री थी। तब धर्मसार राजा से बोला 2ooo महाराज! हम अपनी मगधे की राजदुलारी महारानी के लिये एक अद्भुत मोतियों का हार लाये हैं। हार देखकर राजा उदायन और महारानी प्रभावती अत्यन्त प्रसन्न हुये ।। ओह ! कितने पानी दार मोती हैं। For Private & Personal Use Only वाह ! क्या सुन्दर मुक्ताहार है। I Lore www.jainelibrary.orgPage Navigation
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