Book Title: Kshamadan Diwakar Chitrakatha 001
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ क्षमादान चण्डप्रद्योत का दुर्जेय अहंकार बर्फ की तरह पिघल गया। रोष में लाल चमकने वाली आँखें आज पश्चाताप के आँसुओं से भीग गईं। वह आगे बढ़कर महाराज उदायन के हृदय से लग गया। महाराज उदायन। आप महान् हैं। उस संवत्सरी पर्व की संध्या बेला में दशपुर की छावनी “क्षमावीर महाराज उदायन की जय" "क्षमा वीरस्य भूषणम्" की आवाजों से गूंज उठी।। क्षमा वीरस्य भूषणम्। क्षमावीर महाराज उदायन की जय। - v 31 Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36