Book Title: Kshamadan Diwakar Chitrakatha 001
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत दिवाकर चित्रकथा क्षमादान हा जयपुर भारती अक १ मूल्य २०.०० अकादमी HERE EACO सुसंस्कार निर्माण र विचार शुद्धि : ज्ञान वृद्धि र मनोरंजन Jäln Education International www.jalnesibrary arg Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान क्षमा में जीवन का वह सुख छिपा है, जिसे शब्दों से व्यक्त नहीं किया जा सकता, केवल अनुभव ही किया जा सकता है। वैर, विरोध, द्वेष, कटुता और शत्रुता के पुराने घाव क्षमा की मरहम से ही भरे जा सकते हैं। जैन धर्म में क्षमा को मित्रता का आधार माना है, इसलिए पर्युषण पर्व को क्षमा या मैत्री के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन जो सच्चे मन से क्षमादान करता है, अपना वैर/विरोध भुलाकर मित्रता का भाव बढ़ाता है, वही वास्तव में धर्म की सच्ची आराधना करता है। आज से लगभग २६०० वर्ष पूर्व की यह एक ऐतिहासिक घटना है। सिंधु (सौवीर) देश के राजा उदायन और उज्जयिनी नरेश चंडप्रद्योत दोनों ही वैशाली गणतंत्र के अध्यक्ष महाराज चेटक के दामाद थे। उदायन जहाँ अद्भुत धनुर्धर वीर, नीतिनिष्ठ, धर्मप्रिय शासक थे, वहाँ चंडप्रद्योत अपने अहंकारी व कठोर स्वभाव के कारण प्रसिद्ध थे। चंडप्रद्योत की सबसे बड़ी दुर्बलता थी, नारी ! महाराज उदायन की दासी स्वर्णगुलिका के सौंदर्य-लोभ में फँसकर चंडप्रद्योत ने उनसे शत्रुता मोल ले ली। भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में धनुर्वीर उदायन के हाथों चंडप्रद्योत बन्दी बना लिया गया। महारानी प्रभावती की प्रेरणा से महाराज उदायन भगवान महावीर के परम भक्त बने । अहिंसा और करुणा उनके रग-रग में रम गई। संवत्सरी पर्व के दिन समस्त जीवों से क्षमापना करने के प्रसंग में युद्ध बन्दी चंडप्रद्योत से भी उन्होंने क्षमा माँगी। चंडप्रद्योत ने एक मार्मिक बात कही- "मुझे बन्दी बनाकर मुझसे क्षमा माँगने का क्या अर्थ है ? अगर सच्चे मन से क्षमापना करना है तो पहले मुझे मुक्त करो !" इसी बात पर धर्मवीरं उदायन ने अपने दुर्दान्त शत्रु राजा को मुक्त कर दिया। उसके सब अपराध क्षमा करके प्रेम से गले लगा लिया। चंडप्रद्योत का हृदय भी उदायन के चरणों हृदय से निकला-“उदायन ! तुम महान् हो !" झुक गया। उसके महाराज उदायन ने क्षमापना को जीवन में चरितार्थ करके सचमुच में एक क्षमावीर का आदर्श उपस्थित किया। त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र आदि प्राचीन जैन साहित्य में इस प्रेरक घटना का बड़े गौरव के साथ वर्णन किया गया है। -महोपाध्याय विनय सागर -श्रीचन्द सुराना 'सरस' प्रकाशन प्रबंधक : संजय सुराना Serving Jinshasan संयोजन : श्री सुरेश मुनि • लेखक : उपाध्याय श्री केवल मुनि जी • सम्पादक : श्रीचन्द सुराना 'सरस' प्रकाशक श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282002. फोन सचिव, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर 13-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302017. फोन : 2524828, 2561876, 2524827 अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) 070332 gyanmandir@kobatirth.org Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सया क्षमादान Oral DOToman0OONDORE सिन्धु नदी के तट पर बसे वीतभय पट्टन में राजा उदायन नामक एक वीर, साहसी राजा राज्य करता था। उदायन उदार हृदय एवं धार्मिक प्रकृति का राजा था,वह भवानी देवी का परमभक्त था। उसने अपने पराक्रम से आस-पास के सोलह राज्यों को जीतकर अपने देश की सीमाओं का विस्तार कर लिया था। राजा उदायन का विवाह मगध के राजा चेटक की एक बार राजा उदायन महारानी प्रभावती के साथ पुत्री प्रभावती से हुआ था। महारानी प्रभावती बैठे थे तभी राज पुरोहित कक्ष में आये। कोमल हृदय वाली स्त्री थी। वह भगवान महावीर || महाराज! प्रत्येक वर्षVT के सिद्धान्तों का पालन करती थीं। रामा उदायन की तरह इस बार अपनी रानी से बहुत प्रेम करता था। भी माँ भवानी के अवश्य ! माँ भवानी मन्दिर में उत्सव बलि स्वीकार करके मनाया जायेगा जिसमें प्रसन्न होंगी और 909 पशुओं की बलि हमारे राज्य में चारों चढाई आयेगी। ओर खुशहाली और वैभव की वर्षा करेंगी। E HAASDALASSARARSURI VARAND SRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA Koba, Gandhipagar-382 009. tone:1079)23276252,23276204-03 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70332 क्षमादान महारानी प्रभावती ने यह सुना तो उनका हृदय द्रवित हो गया। वे राजा से बोलीं ●●0000 महाराज! इतने पशुओं की हत्या ! यह घोर पाप है। माँ भवानी तो जगत की माँ हैं। वह इन निरीह पशुओं का वध कराकर कैसे प्रसन्न होंगी। आप ऐसा घोर पाप न कीजिए। Ad यह सुनकर रानी बोली तो ठीक है महाराज, आप ऐसा करें रात्रि के समय कुछ पशु माँ भवानी के मन्दिर के प्रांगण में छोड़ दें अगर माँ की इच्छा होगी तो वह इन पशुओं के प्राण अपने आप हर लेंगी। शु "महारानी ! यह परम्परा तो हमारे पुरखों से चली आ रही है इसे कैसे रोका जा सकता है ? और अगर अगले दिन यह पशु जिन्दा रहे तो आप माँ की इच्छा समझकर बलि चढ़ाना बन्द कर देंगे। 2716676777 अगर बलि न चढ़ाई गई तो माँ भवानी कुपित हो जायेंगी और देश में अकाल, महामारी आदि फैल जायेंगी। 2 ठीक है महारानी हमें आपकी शर्त स्वीकार है। ARONEYA TRAVRATRE 600 sagEwww.janelibrary/s 400sarees, sagerses (evoj and Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान उस रात राजा उदायन के आदेशानुसार मन्दिर के प्रांगण में पशुओं को बन्द कर दिया गया। और चारों ओर कडा पहरा लगा दिया गया। अगले दिन प्रातः मन्दिर के दरवाजे के सामने बहुत भीड़ इकट्ठी हो गई। लोग तरह-तरह की अटकलें लगाने लगे परन्तु जब दरवाजा खोला गया तो मन्दिर के प्रांगण में सब पशु जीवित अवस्था में विचर रहे थे। यह देखकर लोग अचम्भित हो गये। (आश्चर्य ! सभी पशु जीवित हैं। शायद माँ हमसे नाराज हैं। इसलिये बलि स्वीकार नहीं की। और खुश हाल भी है...? Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान जब यह खबर राजा उदायन और प्रभावती के पास पहुंची तोआश्चर्य है! एक भी पशु की बलि माँ ने नहीं ली...? महाराज! अब आप अपना वचन पूर्ण कीजिये। देखा ! मैंने कहा था न माँ, । माँ होती है.वह किसी के प्राण नहीं ले सकती। अवश्य महारानी! हम आज से प्रण करते हैं कि अब राज्य में कहीं भी कोई बलि नहीं दी जायेगी। (UTC राजा ने सेनापति को बुलवाकर पूरे राज्य में बलि पर प्रतिबन्ध लगाने की घोषणा करवा देने को कहा सेनापति ने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी। सुनो ! सुनो ! सुनो ! आज से कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार की बलि नहीं चढ़ायेगा और पशु-पक्षियों का शिकार नहीं खेलेगा। यदि वह ऐसा करता पाया गया तो राजदण्ड का पात्र होगा। AMAVASAVAVAJ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान इस घटना के बाद राजा उदायन की जिन्दगी में समय आने पर महारानी ने एक पुत्र को जन्म एकदम परिवर्तन आ गया। वह भी भगवान दिया। उसका नाम अभीचिकुमार रखा गया। महावीर के बताये सत्य, अहिंसा, क्षमा के सिद्धान्तों पर चलने लगे। उन्होंने जैन धर्म के बारह व्रतों को स्वीकार कर लिया और उसका पालन करने लगे। PROO 096 जब राजकुमार बड़ा हुआ तो राजा ने उसे योग्य राजकुमार बड़ा ही मेधावी था। वह जल्दी ही गुरु के संरक्षण में भेजकर अस्त्र-शस्त्र चलाने की |अस्त्र-शस्त्र आदि विद्याओं में पारंगत हो गया। उचित शिक्षा का प्रबन्ध कराया। Drum इस तरह अपने मेधावी पुत्र और धर्मशील रानी के साथ राजा का जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा था। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान एक बार मगध देश का धर्मसार नामक एक व्यापारी जहाजों में माल भरकर गांधार काबुल आदि देशों में व्यापार करने गया। लौटते समय वह सिन्धु नदी के हरे-भरे सुरम्य तट पर पहुंचा। वहाँ उसे मगध कि दूसरे व्यापारी भी मिल गये। बंदरगाह पर उतरकर उन्होंने तटरक्षकों से पूछा। यह कौन-सी जगह है? यहाँ कौन से राजा राज्य करते हैं? Minoinजाक यह सिंध देश है। अत्यन्त पराक्रमी एवं वीर उदायन हमारे रामा हैं। आप लोग किस देश के निवासी हैं और यहाँ क्यों आये हैं? इसके लिये तो आपको हमारे राजा से आज्ञा लेनी होगी/कल ) सुबह आप राजदरबार / में उपस्थित हों। हम मगध के व्यापारी हैं और तुम्हारे देश में व्यापार करना चाहते हैं। 6 इतना कहकर तटरक्षक ने उन्हें आदरपूर्वक अतिथि भवन में ठहरा दिया। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान दूसरे दिन प्रातः सभी व्यापारी राज सभा में उपस्थित हुए। 10000 व्यापारियों ने बहुमूल्य वस्तुयें राजा को भेंट की। उदायन ने उनसे कहा आप हमारे राज्य में निर्भीक होकर व्यापार कर सकते हैं। धर्मसार ने चमकते हुए सुन्दर मोतियों का हार निकाल कर महारानी को भेंट किया। महारानी, अपनी मातृभूमि की ओर से यह भेंट स्वीकार करें। महाराज! हम मगध देश के रहने वाले हैं। आपके देश में व्यापार करने की आज्ञा चाहते हैं। हम आपके लिये विभिन्न देशों से कुछ वस्तुएँ उपहार लाये हैं। 40000 अण्णा Jai महारानी प्रभादेवी मगध के राजा चेटक की पुत्री थी। तब धर्मसार राजा से बोला 2ooo महाराज! हम अपनी मगधे की राजदुलारी महारानी के लिये एक अद्भुत मोतियों का हार लाये हैं। हार देखकर राजा उदायन और महारानी प्रभावती अत्यन्त प्रसन्न हुये ।। ओह ! कितने पानी दार मोती हैं। वाह ! क्या सुन्दर मुक्ताहार है। I Lore Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान श्रेष्ठी धर्मसार को राजकीय सम्मान के साथ हमारे अतिथि। गृह में ठहराया जाय। ELECIAL महारानी प्रभावती ने अपनी विश्वस्त परिचारिका कुब्जा को बुलवाकर कहा कुब्जा! श्रेष्ठी धर्मसार हमारे स्वधर्मि-बन्धु हैं अतः इनके अतिथि सत्कार में कोई कमी नहीं रहे। ७८०.०.७ सब व्यापारी अपना माल बेचकर|| एक रात्रि अचानक धर्मसार को अतिसार रोग हो गया, राज वैद्य को मगध देश वापस चले गये परन्तु तुरन्त बुलाया गया। राज वैद्य ने धर्मसार को औषधि आदि दी। धर्मसार महाराज के विशेष आग्रह पर | कुब्जा ने बड़ी सावधानी और लगन के साथ धर्मसार की सेवा की। कुछ दिन और रुक गया। कुब्जा की सेवा भावना से श्रेष्ठी धर्मसार बहुत प्रभावित हुआ। स्वस्थ होने पर धर्मसार ने कुब्जा से कहा कुब्जा! तू नाम व देह से कुब्जा है परन्तु तेरा मन बड़ा विराट है। संसार में कुछ व्यक्ति उस फूल के समान होते हैं जो देखने में तो सुन्दर नहीं लगते, परन्तु अपनी सुगन्ध से सबका मन मोह लेते हैं। सचमुच तू ऐसा ही फूल है। Do, Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान कुब्जा अपनी प्रशंसा सुनकर आँखें नीची करके मुस्कराने लगी। कुब्जा, मैं तेरी सेवा भावना से बहुते प्रसन्न हुआ हूँ। मेरे पास कुछ दिव्य वस्तुएँ हैं तू जो चाहे मांग लें। सेठ जी! नारी के लिये सबसे बड़ा दुःख उसकी कुरूपता है। मेरा कुबड़ा रूप और काला रंग ही मेरा दुःख है। मेटी एक ही चाह है सुन्दरता AGAN 1900000 कुब्जा की बात सुनकर धर्मसार ने अपनी पेटी अगले दिन श्रेष्ठी धर्मसार ने राजा से विदा ली और में से एक दिव्य गुटिका निकालकर उसे दी। वापस अपने मगध देश को लौट गया। (पूर्णिमा की रात को इस गुटिका का सेवन करने से तुम्हारा रूप लावण्य अप्सरा के समान हो जायेगा। 53 आठ दिन पश्चात् पूर्णिमा की रात्रि आई। कुब्मा ने स्नान आदि करके गुटिका का सेवन करने से पहले भगवान का स्मरण किया। हे भगवान! इस दिव्य औषधि के प्रभाव से मैं संसार की अद्वितीय सुन्दरी बन जाऊँ....। श्रेष्ठी के कहे अनुसार आज मुझे गुटिका का सेवन करना चाहिए। KLOOD Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान कुब्जा ने जैसे ही उस गोली का सेवन किया एक दिव्य प्रकाश उसके शरीर से फूट पड़ा और वह एक अत्यन्त सुन्दर रूपवती स्त्री में बदल गई। कुब्जा ने जब आइने में अपनी सूरत देखी वह तुरन्त राजमहल में महारानी प्रभावती के पास जा पहुंची। तो वह हैरान हो गई। पश रानी ने उसे देखकर आश्चर्य से पूछा सुन्दरी तुम कौन हो? महारानी जी, मैं आपकी N श OOOOOO दासी कुब्जा ADMITTER ओह ! अद्भुत गुटिका से वास्तव में मेरा रूप लावण्य खिल उठा है। और कुब्जा ने पूरी घटना रानी को सुना दी। यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे राजमहल में फैल गई। अपनी कुब्जा स्वर्ण गुटिका का सेवन करके स्वर्ग की अप्सरा-सी सुन्दर हो गई है। कुछ ही दिनों में कुब्जा के स्वर्ण गुटिका खाकर सुन्दर बन जाने के चर्चे सारे सिंध में फैल गये। लोग धीरेधीरे उसे स्वर्ण गुलिका के नाम से जानने लगे। इस देश में कोई भी स्त्री स्वर्ण गुलिका के समान रूपवान नहीं है। in Education o Pra eson Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान उन दिनों उज्जयिनी भारत का बहुत बड़ा व्यापारिक एक बार सिंध के कुछ व्यापारी व्यापार करने केन्द्र था वहाँ का शासक चण्डप्रद्योत था। अपने | उन्मयिनी आये।वे शिप्रा नदी के तट पर आराम कठोर व गर्वीले स्वभाव के कारण वह पूरे भारत करने के लिये एक बगीचे में रुके। वहाँ पर में प्रसिद्ध था। सुन्दर स्त्री और अद्भुत वस्तुयें उज्जयिनी के व्यापारियों से उनकी भेंट हुई। उसकी कमजोरी थीं। 13 हम सिंध से आपके देश में व्यापार करने आये हैं। manart उज्जयिनी में आपका स्वगात है। वे आपस में बातें करने लगे। हमने सुना है आपके महाराज के पास कुछ अद्भुत वस्तुएँ हैं। हाँ, हमारे राजा के अच्छा, कृपया हमें पास चार दिव्य || उनके बारे में विस्तार वस्तुएँ हैं। से बतायें। सबसे पहली दिव्य वस्तु है महारानी शिवादेवी। ReTV उम्मयिनी का व्यापारी उनको महारानी शिवादेवी के बारे में बताने लगा। 11 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान एक बार उन्जयिनी में किसी असुर का उपद्रव हुआ। नगर के मुख्य बाजार में अचानक आग लग गई। धू-धू कर दुकानें जलने लगीं। हाथियों की सूंड़ में भरकर खूब पानी फेंका गया, बालू फेंकी गई परन्तु आग शान्त नहीं हुई। तब महारानी ने राजमहल के गवाक्ष में खड़े होकर णमोकार मंत्र का दिव्य जल अग्नि पर फैंकाRIC मैं अग्निदेव को साक्षी मानकर कहती हूँ मेरा ODIOON OOD. DOO (शील धर्म अखण्ड है, तो इस णमोकार मंत्र के दिव्य जल से अग्नि शान्त हो जाये। तुरन्त अग्नि शान्त हो गई। दूसरा आकर्षण है लोहनंघ दूत। यह दूत एक दिन में पच्चीस योजन चलकर तय कर सकता है। न की दूरी एक बार शत्रु राजा ने इस दूत को पकड़कर अपने सैनिकों द्वारा इसकी जांघों पर लोहे की गदाओं से प्रहार करवाया। * पच्चीस योजन = सौ कोस = लगभग दौ सौ पचास किलोमीटर Jain Education international For Private & Personal use only www.jalnelibrary.org Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान लोहे की गदायें चूर-चूर हो गई परन्तु तीसरी दिव्य वस्तु है अग्नि भीक स्थ। किसी विद्याधर उसका बाल-बाँका भी नहीं हुआ। तब से की युद्ध में सहायता करने के कारण प्रसन्न होकर उसने इस दूत का नाम लोहगंध प्रसिद्ध हो गया। महाराज प्रद्योत को यह स्वर्ण रथ भेंट किया था। EMUN AWANLAOD UOM एक बार युद्ध में शत्रुओं ने अग्नि बाण द्वारा चारों तरफ अग्नि वर्षा प्रारम्भ कर दी। परन्तु अग्नि बाणों के बीच रथ ऐसे दौड़ता चला गया । जैसे खाली मैदान में दौड़-रहा हो। shivayamaAREATR o OG चौथा आश्चर्य है अनलगिरि हाथी। हाथी क्या है कृष्ण पर्वत का टुकड़ा जैसा है। उसके शरीर से झरते मद की। गंध के कारण आस-पास विचर रहे हाथियों का मद उतर जाता है और वह सुस्त हो जाते हैं। OOGGC SamM Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतना सुनाकर उज्जयिनी के व्यापारी ने कहा हाँ! हमारे राज्य में एक स्वर्णगुलिका नामक दासी है जिसके सौन्दर्य के सामने स्वर्ग की अप्सरा भी पानी भरती हैं। क्या आपके राज्य में भी कोई ऐसी आश्चर्यजनक वस्तु है। महाराज! हम आपके लिये एक अद्भुत उपहार लाये हैं। Viz सिंध के व्यापारी महाराज चण्डप्रद्योत के राज दरबार में आते हैं। GOOG क्षमादान W व्यापारी उन्हें स्वर्णगुलिका का चित्र दिखाता है। वाह ! इसका रूप लावण्य तो स्वर्ग की अप्सराओं के समान है। हमारे महाराज को यह चित्र भेंट करो, वह प्रसन्न गये तो आपको मालामाल कर देंगे/ अच्छा देखें क्या लाये हैं आप ! व्यापारी चण्डप्रद्योत को चित्र दिखाता है। चित्र देखकर चण्डप्रद्योत की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। यह चित्र किसी मानवी का है अथवा स्वर्ग की अप्सरा का ? क्या ऐसी सुन्दर स्त्री इस धरती पर वाकई है, कौन है यह ? Peewwese 14 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान महाराज! यह राजा उदायन के महलों में रहने वाली एक दासी है इसका नाम स्वर्णगुलिका है पूरे सिंधु देश में इससे सुन्दर दूसरी स्त्री नहीं है। चण्डप्रद्योत चित्र देखकर विचारों में डूब गये।। स्वर्णगुलिका ! क्या सचमुच यह इतनी सुन्दर है? यह तो हमारे महल की शोभा बनने योग्य है। इसे हम अपनी रानी बनायेंगे। 100NM OCIATA SAARTI चण्डप्रद्योत मन ही मन स्वर्ण गुलिका को प्राप्त करने का निश्चय कर लेता है। वह व्यापारियों से बोला आप लोग हमारे अतिथि बनकर जितने दिन चाहें यहाँ रहिये और दिल खोलकर व्यापार कीजिये। हम आप पर प्रसन्न हैं। HAMAAAY AP 15 Jain Education Interational Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान. व्यापारियों के जाने के बाद चण्डप्रद्योत ने अपने दूत लोहनंघ दूत वायु गति से सिंध पहुँचा और लोहनंघ को बुलवाया और अपना संदेश लेकर राजमहल के बगीचे में छुपकर स्वर्णगुलिका के स्वर्णगुलिका के पास सिंध भेजा। आगमन की प्रतीक्षा करने लगा। स्वर्णगुलिका लोहगंध तुम सिंध जाकर प्रातःकाल बगीचे में पूजा के लिए फूल लेने आई। वहाँ स्वर्णगुलिका नामक रूपसी M को हमारा प्रेम संदेश दो हम यह अद्वितीय सुन्दरी अवश्य उससे अपने महलों की शोभा ही स्वर्णगुलिका है। बढ़ाना चाहते हैं। जब स्वर्णगुलिका उसके करीब आई तो उज्जयिनी की भावी रानी को मेरा) REE प्रणाम! F मैं उन्नयिनी नरेश का दूत हूँ लोहगंध महाराज ने आपके लिए यह संदेश भेजा है। वाह! मेरी तो तकदीर raचमक गई। तुम कौन हो? और यह क्या कह रहे हो एप्पण www Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान संदेश सुनकर स्वर्णगुलिका मन ही मन अत्यन्त स्वर्णगुलिका का सन्देश लेकर लोहगंध वापस प्रसन्न हुई परन्तु ऊपर से नाराजगी प्रकट |उन्जयिनी लौट गया और चण्डप्रद्योत को सनाया।। करती हुई बोली। वहूँ! ठीक ही तो है। जिसे हम अगर महाराज सचमुच अपनी रानी बनाना चाहते हैं मुझे चाहते हैं तो लेने AMETES उसे स्वयं ही जाकर के लिए स्वयं आये। सम्मानपूर्वक लाना चाहिए। artial... Hits रामा चण्डप्रद्योत के सिंध नाकर स्वर्णगुलिका को लाने की खबर उसकी रानी शिवा देवी को लगी। स्वामी! इस तरह सिंध जाकर चुपचाप स्वर्णगुलिका को लेकर आना क्षत्रिय धर्म के योग्य नहीं / है। फिर वह तो मेरी छोटी/ बहिन की दासी है। महारानी! हम जिसको प्राप्त करने का निश्चय कर लेते हैं। उसको पाकर ही रहते हैं। अतः आप हमारे कार्य में विघ्न न डालें। DDA इतना कहकर चण्डप्रद्योत वहाँ से चल दिया। उसी रात चण्डप्रद्योत ने अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों को साथ लिया और अनलगिरि हाथी पर बैठकर सिंध की तरफ चल पड़ा/गाय Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान हाथी हवा से बातें करता हुआ कुछ ही दिन बाद महाराज उदायन की राजधानी जा पहुंचा। गुप्तचरों ने स्वर्ण गुलिका को राजा के आगमन का समाचार दिया। महाराज! आपको लेने के लिए स्वयं पधारे हैं। वह राजउद्यान में आपकी प्रतिक्षा कर रहे हैं। (मैं रात्रि के दूसरे प्रहर में राजउद्यान में) महाराज के पास पहुँच जाऊँगी। 300000 SOXOXOO CONCELOS रात्रि के दूसरे प्रहर में स्वर्णगुलिका गुप्त मार्ग द्वारा रामउद्यान में पहुंची। स्वर्णगुलिका! देखो हम तुम्हें नाना अपनी रानी बनाने के लिए स्वयं यहाँ आये हैं। तुम हमारे साथ उज्जयिनी चलो। AE Hin मिस महारान में तो आपके चरणों की दासी हूँ। चण्डप्रद्योत ने स्वर्णगुलिका को हाथी पर बिठाया और रात में चे वापस उज्जयिनी की तरफ भाग निकला। 13 NEIST 10960 18 . Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान अगले दिन प्रातःकाल महाराज उदायन की गजशाला में हाथियों को सुस्त और ऊँघते देखकर गज पालक को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने खोज की तो पता चला.....! अवश्य ही यहाँ अनलगिरि हाथी का आगमन हुआ होगा जिसके मद की सुगन्ध से सभी हाथी सुस्त हो गये हैं। मुझे महाराज को तुरन्त खबर करनी चाहिए। गुप्तचरों ने खोज करके राजा उदायन को सूचित किया। महाराज! कल रात उज्जयिनी के राज़ा चण्डप्रद्योत अपने अनलगिरि हाथी पर बैठकर यहाँ पधारे थे। वह आपके गजपालक ने इसकी सूचना महाराज उदायन को दी। उदायन ने अपने गुप्तचरों को बुलवाया। पता लगाया जाय कि वह अद्भुत गज यहाँ क्यों आया था? राजमहल की दासी स्वर्णगुलिका को अपने साथ भगाकर ले गये हैं। joann 2011' aaaool PU यह सुनकर उदायन अत्यन्त क्रोधित हुए। उन्होंने तुरन्त अपने दूत को उज्जयिनी भेजा 19 तुरन्त उज्जयिनी जाकर राजा चण्डप्रद्योत को हमारा संदेश दो। ty.org Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान दूत उज्जयिनी पहुँचकर चण्डप्रद्योत को राजा उदायन को संदेश सुनाता है। महाराज, हमारे स्वामी महाराज उदयन ने कहलाया है कि आपका यह आचरण क्षत्रिय धर्म के योग्य नहीं है। आप तुरन्त स्वर्णगुलिका दासी को सम्मानपूर्वक वापस करके महाराज से क्षमायाचना कीजिए। महाराज! आप और राजा उदायन परस्पर रिश्तेदार हैं और एक दासी के लिए रिश्तेदारों में युद्ध के नगाड़े बजाना, हजारों क्षत्रियों का खून बहाना क्या आप उचित समझते हैं? चण्डप्रद्योत गर्वित स्वर में दूत से बोला 20 चण्डप्रद्योत को जो वस्तु अच्छी लगती है उसे वह चाहे जैसे, चाहे जहाँ से प्राप्त कर लेता है। लाई हुई वस्तु को लौटाना चण्डप्रद्योत नहीं जानता उचित अनुचित का फैसला तो क्षत्रिय की तलवार करती हैं। अपने महाराज से कह दो, स्वर्णगुलिका से इतना ही प्यार है तो आ जायें और हमसे छीनकर ले जायें। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान दूत ने वापस आकर चण्डप्रद्योत की बातें राजा उदायन को सुनाई। बातें सुनकर उदायन क्षुब्ध हो गये। चण्डप्रद्योत को उसकी करनी का फल मिलना ही चाहिए। युद्ध की तैयारी की जाये। IROOOOOOvi उदायन ने चण्डप्रद्योत की राजधानी पर आक्रमण कर दिया। दोनों सेनायें अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर युद्ध भूमि में आकर घमासान युद्ध करने लगीं। NCP युद्ध करते-करते शाम हो गई और पहले दिन युद्ध विराम कर दिया गया। ११ airt Education International Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान दूसरे दिन सुबह फिर युद्ध प्रारम्भ हुआ। परन्तु उदायन के अचूक बाणों के सामने चण्डप्रद्योत अपने दुर्जेय अनलगिरि हाथी पर पहाड़-सा अनलगिरि हाथी मिट्टी की दीवार की चढ़कर रण भूमि में उतरा। भौति थरथरा कर भागने लगा। SaluIOHIG6IOCERY 6000 KJada चण्डप्रद्योत को हारता हुआ देखकर उसका दूत लोहगंध हवा में उड़ता हुआ राजा उदायन की तरफ लपका। 22 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान लोहजंघ को अपनी ओर आता देखकर उदायन ने तरकश से अभिमन्त्रित बाण निकालकर छोड़ा। बाण में से तीव्रगति से एक प्रकाश का रस्सा निकला और लोहजंघ के चारों ओर लिपट गया। लोहजंघ रस्से में उलझकर हवा में अधर लटक गया। MOS तभी चण्डप्रद्योत का सारथी अग्निभीरू रथ दौड़ाता हुआ चण्डप्रद्योत के पास पहुँच गया। महाराज ! आप इस रथ में आ जाइये। चण्डप्रद्योत तुरन्त हाथी से उतर कर रथ पर चढ़ गया। 23 - Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान सारथी बड़ी तेजी से रथ को उदायन की सेना के बीच में दौड़ाने लगा। रथ में से चण्डप्रद्योत विद्युत गति से तीर चलाकर शत्रु के सैनिकों को मारने लगा। अब मेरे तीरों से कोई नहीं बच पायेगा। यह देखकर रामा उदायन चण्डप्रद्योत के सामने आ गये और उसे ललकारा। हठीले कामी पुरुष, इन निरपराध | क्षत्रियों के खून की होली बन्द करो। आओ हम दोनों परस्पर युद्ध करेंगे। ललकार सुनकर चण्डप्रद्योत उदायन की तरफ आक्रमण करने लपका। 24 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान दोनों के बीच घमासान युद्ध चालू हो गया। उदायन के सैनिकों ने चण्डप्रद्योत को चारों ओर से घेर लिया। घनघोर युद्ध के पश्चात् राजा उदायन ने चण्डप्रद्योत को पराजित कर बन्दी बना लिया। अहंकारी चण्डप्रद्योत ने उदायन से कहा बन्दी बनाकर चण्डप्रद्योत को उदायन के सामने लाया गया। राजा चण्डप्रद्योत! मुझे तुम्हारे राज्य का लोभ नहीं है। तुम बस अपने अपराध की क्षमा माँग लो और स्वर्णगुलिका दासी को सम्मानपूर्वक मुझे 800 वापस लौटा दो। मैं तुम्हारा जीता हुआ राज्य वापस कर सकता हूँ। (क्षत्रिय की गर्दन टूट सकती है झुक) नहीं सकती। मैं अपने किये पर पश्चात्ताप नहीं किया करता। R 25 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान यह सुनकर महारान उदायन ने चण्डप्रद्योत को बन्दी बनाकर अपने साथ सिंध ले जाने का निश्चय किया। वह अपने सेनापति से बोले इस जघन्य अपराध का सतत् बोध कराने के लिये राजा प्रद्योत के ललाट पर 'मम दासी पति शब्द अंकित कर दिया जाये। इनके चारों तरफ सैनिकों का कड़ा पहरा रहे। सेनापति ने राजाज्ञा का पालन किया। चण्डप्रद्योत के ललाट पर दासी पति अंकित कर उसको लोहे के पिंजरे में बन्द कर दिया। चारों तरफसैनिकों का पहरा बिठा दिया गया। युद्ध काल में ही वर्षा ऋतु प्रारम्भ हो चुकी थी फिर भी महाराज उदायन उजयिनी में नहीं रुके और सेना सहित वहाँ से कूच कर गये। Jai* मेरी दासी का पाल 26 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्जयिनी से कुछ दूर आकर उदायन ने सेना का पड़ाव डाला और सेनापति को बुलाकर कहा हम वर्षा ऋतु के दो मास यहीं पड़ाव डालेंगे उसके पश्चात् आगे प्रस्थान करेंगे। जो आज्ञा महाराज । उदायन के आदेशानुसार रसोईया चण्डप्रद्योत के पास पहुँचा। आज आप क्या भोजन करेंगे? NEVA क्षमादान एक दिन प्रातः काल राजा उदायन ने अपने रसोईये को बुलाया। क्यों आज क्या विशेष बात है जो हमें भोजन के लिए जा रहा है? पूछा "आज संवत्सरी-भादवा सुदी पंचमी का दिन 'है हम उपवास करेंगे। हमारे लिए भोजन नहीं बनेगा अतः तुम राजा प्रद्योत से पूछ लेना जैसा भोजन लेना चाहे उनके लिए बनाकर उनको ठीक से खिला देना। Boor.a आज संवत्सरी पर्व है। महाराज उदायन का आज उपवास है। वे पौषधशाला में पर्वाराधना करेंगे। अतः आज केवल आपका ही भोजन बनेगा। 27 Qu! N Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चण्डप्रद्योत ने सोचा हूँ ! जरूर इसमें भी कोई चाल है। आज मेरे अकेले के लिए भोजन बन रहा है। जरूर इसमें विष मिलाकर मुझे खिलाना चाहते हैं। दाम पात राजा उदायन ने सायंकाल संवत्सरी प्रतिक्रमण किया। चार गति चौरासी लाख जीवयोनियों से क्षमापना करके प्रसन्न मन से वे उठे और बन्दी खाने में चण्डप्रद्योत के पास आये। और बोले संवत्सरी पर्व के प्रसंग पर मैं आप से भी क्षमापना करता हूँ। राजनीति की मजबूरी के कारण आपको जो भी कष्ट पहुँचा हो |इसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ। क्षमादान पती चण्डप्रद्योत रसोइये से बोला जब महाराज उदायन का उपवास है तो हम भी आज उपवास करेंगे। ठास 57 28 : F इस सुनहरे मौके को चण्डप्रद्योत कैसे हाथ से निकलने देता-वह व्यंग्य पूर्वक उदायन से बोला ner पती वाह कैसा विचित्र है यह धर्म का ढोंग । कैसी है यह क्षमापना -? एक तरफ तो हमें बन्दी बनाकर अपमान और पराधीनता की आग में तिल-तिल जला रहे हो। दूसरी तरफ मेत्ती मे सव्व भूएसु का पाठ बोलकर मित्रता का नाटक कर रहे हो? Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान इतना कहकर चण्डप्रद्योत ने मुँह फेर लिया औरचण्डप्रद्योत की बात सुनकर महाराज उदायन बोला गहरे सोच में डूब गये। मुझे नहीं करना ऐसा झूठा क्षमापना। यदि सच्चे मन से अपराधी के अपराधों को क्षमा करना मेरा आप सब जीवों को अपने धर्म है और आज की स्थिति में मेरा सबसे समान मानते हो तो मुझे क्यों बड़ा अपराधी चण्डप्रद्योत है। राजधर्म ने बन्दी बना रखा है? इसे अपराधी मानकर बन्दी बनाया है। तो क्या मेरा आत्मधर्म इसे अपना मित्र मानकर मुक्त नहीं कर सकता? राजा उदायन अर्तमन्थन करते हैं उदायन को दुविधा में देखकर चण्डप्रद्योत ने उनसे । कहा-राजन! आज आपकी धर्म परीक्षा की घड़ी है। आपका धर्म, सामायिक, पौषध, पर्युषण पर्व केवल दिखावा है, छलावा है या दिल से क्षमापना करते हैं? इस बात का निर्णय आज हो जायेगा। यह सारा युद्ध तो अहंकार का है। स्वर्णगुलिका अपने मन से चण्डप्रद्योत के साथ चली गई। उसके विश्वासघात को मैं अपने मान-अपमान के साथ क्यों जोड़ता हूँ। मेरा आत्म-सम्मान स्वर्णगुलिका के साथ नहीं, अपने धर्म के साथ जुड़ा है। मेरा धर्म है-क्षमा! वैर-विरोध का उपशमन मुझे अपने धर्म की रक्षा करनी है, अहंकार की नहीं! चण्डप्रद्योत को खमाये बिना मेरा क्षमापना अधूरा ही रहेगा। Education International , Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतना सोचकर राजा उदायन दण्डनायक से बोले AAVA क्षमादान महाराज चण्डप्रद्योत के बन्धन खोलकर इन्हें मुक्त कर दो। आज से यह हमारे बन्दी नहीं, बन्धु हैं। चकित दण्डनायक ने पिंजरे का ताला खोलकर चण्डप्रद्योत को मुक्त कर दिया। चण्डप्रद्योत को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, वह पिंजरे से निकल कर उदायन के सामने खड़ा हो गया। परन्तु उसे ऐसा लगा जैसे किसी ऊँचे पर्वत शिखर के सामने वह तो एक चींटी के समान तुच्छ है। उदायन की महानता के सामने चण्डप्रद्योत स्वयं को बहुत बौना समझने लगा। 30 मुझे क्षमा कर देना बन्धु ! 1 Mohing Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षमादान चण्डप्रद्योत का दुर्जेय अहंकार बर्फ की तरह पिघल गया। रोष में लाल चमकने वाली आँखें आज पश्चाताप के आँसुओं से भीग गईं। वह आगे बढ़कर महाराज उदायन के हृदय से लग गया। महाराज उदायन। आप महान् हैं। उस संवत्सरी पर्व की संध्या बेला में दशपुर की छावनी “क्षमावीर महाराज उदायन की जय" "क्षमा वीरस्य भूषणम्" की आवाजों से गूंज उठी।। क्षमा वीरस्य भूषणम्। क्षमावीर महाराज उदायन की जय। - v 31 Education International . Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपके सम्पूर्ण घर-परिवार के लिए पठनीय जैन संस्कृति और इतिहास के साथ जीवन्त सम्पर्क बनाने वाली रंगीन चित्रमय कथाएँ चिंतामणिपार्श्वनाथ भगवान दामादान ऋषभदेव म अभयकुमार भगवान महावीर की बोध कथाएं दिवाकर चित्रकथा प्रत्येक पस्तक का मल्ये १७.००रुपये अंग्रेजी संस्करण का मूल्य २०.०० रुपये गुजराती संस्करण का मूल्य २०.००रुपये एक वर्षीय सदस्यता १७०.००रुपये पाँच वर्षीय सदस्यता ७५०.०० रुपये पाँच वर्षीय सदस्य बनकर घर बैठे ५५ पुस्तकें प्राप्त करें। २१.०० आपके स्वाध्याय में उपयोगी ज्ञानवर्द्धक सचित्र पुस्तकें। प्रभावना में बाँटे या पुरस्कार देवें। सचित्र भक्तामर स्तोत्र ३२५.०० , सचित्र भावना आनूपूर्वी २१.०० - सचित्र णमोकार महामन्त्र १२५.०० , सचित्र मंगलमाला (प्रेस में) - सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ५००.०० भक्तामर स्तोत्र (चित्रमय पाकेट साईज) १८.०० - सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र ४२५.०० गौतम लब्धि यंत्र ५०.०० - सचित्र तीर्थंकर चरित्र २००.०० , वर्धमान शलाका यंत्र ५०.०० - सचित्र कल्पसूत्र ५००.०० भक्तामर यंत्र लेमीनेटेड ७०.०० हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद के साथ उपलब्ध। अंग्रेजी संस्करण भी उपलब्ध। ए-७, अवागढ़ हाउस, अजना सिनेमा के सामने, प्रकाश एम. जी. रोड. आगरा-२. दूरभाष : ३५११६५, ५१७८९ ain Education Intemational Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनधर्म के प्रसिद्ध विषयों पर आधारित रंगीन सचित्र कथाएं: दिवाकर चित्रकथा जैनधर्म, संस्कृति, इतिहास और आचार-विचार से सीधा सम्पर्क बनाने का एक सरलतम, सहज माध्यम। मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्द्धक, संस्कार-शोधक, रोचक सचित्र कहानियाँ। 055 पुस्तकों के सैट का मूल्य 1100.00 रुपया। 33 पुस्तकों के सैट का मूल्य : 640.00 रुपया। - क्षमादान - भगवान ऋषभदेव - णमोकार मन्त्र के चमत्कार चिन्तामणि प्रसिद्ध कडियाँ पार्श्वनाथ भगवान महावीर की बोध कथायें 0 बुद्धिनिधान अभयकुमार - शान्ति अवतार शान्तिनाथ - किस्मत का धनी धन्ना - करुणानिधान भगवान महावीर - राजकुमारी चन्दनबाला - सती मदनरेखा सिद्धचक्र का चमत्कार मेघकुमार की आत्मकथा युवायोगी जम्बुकुमार राजकुमार श्रेणिक भगवान मल्लीनाथ । महासती अंजनासुन्दरी - करनी का फल (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) भगवान नेमिनाथ - भाग्य का खेल करकण्डू जाग गया । जगत् गुरु हीरविजय सूरि 0 वचन का तीर - अजातशत्रु कूणिक पिंजरे का पंछी धरती पर स्वर्ग नन्द मणिकार कर भला हो भला तृष्णा का जाल पाँच रत्न। प्रत्येक पुस्तक का मूल्य : 20/ 'भगवान महावीर समाढविमादित्याना भगवान जयभदेला चमत्कार Shital अदिनिधान आकानयानगर मायामा मोनाथ राजाप्रश्न चन्दनवाला कशकुमार यजणाह का चित्रकथाएँ मँगाने के लिए निम्न पते पर एम.ओ. या ड्राफ्ट भेजें Shree Diwakar Prakashan A-7, Awagarh House, Opp. Anjna Cinema, M. G. Road, Agra-282 002. Ph.: (0562) 2851165. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनित्य भावना MAR जीवन एवं धन अंजलि जल के समान अस्थिर है। 24अनित्य भावनाः नश्वरता का बोध हे आत्मन् ! विचार कर; जिस प्रकार खिला हुआ फूल मुा जाता है, अंजलि का जल बूंद-बूंद टपक कर समाप्त हो जाता है। संध्या की लाली अन्धेरे में बदल जाती है। इसी प्रकार यह बचपन, यौवन, शरीर की सुन्दरता, सत्ता और संपत्ति आदि सब कुछ अस्थिर एवं नाशवान है। तू इनसे ममत्व हटा, अविनाशी आत्मा का ध्यान कर ! For Privale & Personal Use Only