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क्षमादान हाथी हवा से बातें करता हुआ कुछ ही दिन बाद महाराज उदायन की राजधानी जा पहुंचा। गुप्तचरों ने स्वर्ण गुलिका को राजा के आगमन का समाचार दिया।
महाराज! आपको लेने के लिए स्वयं पधारे हैं। वह राजउद्यान में आपकी
प्रतिक्षा कर रहे हैं।
(मैं रात्रि के दूसरे प्रहर में राजउद्यान में)
महाराज के पास पहुँच जाऊँगी।
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रात्रि के दूसरे प्रहर में स्वर्णगुलिका गुप्त मार्ग द्वारा रामउद्यान में पहुंची।
स्वर्णगुलिका! देखो हम तुम्हें नाना अपनी रानी बनाने के लिए
स्वयं यहाँ आये हैं। तुम हमारे
साथ उज्जयिनी चलो।
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मिस महारान में तो आपके चरणों
की दासी हूँ।
चण्डप्रद्योत ने स्वर्णगुलिका को हाथी पर बिठाया और रात में चे वापस उज्जयिनी की तरफ भाग निकला।
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