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क्षमादान संदेश सुनकर स्वर्णगुलिका मन ही मन अत्यन्त स्वर्णगुलिका का सन्देश लेकर लोहगंध वापस प्रसन्न हुई परन्तु ऊपर से नाराजगी प्रकट |उन्जयिनी लौट गया और चण्डप्रद्योत को सनाया।। करती हुई बोली।
वहूँ! ठीक ही तो है। जिसे हम अगर महाराज सचमुच
अपनी रानी बनाना चाहते हैं मुझे चाहते हैं तो लेने AMETES
उसे स्वयं ही जाकर के लिए स्वयं आये।
सम्मानपूर्वक लाना चाहिए।
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रामा चण्डप्रद्योत के सिंध नाकर स्वर्णगुलिका को लाने की खबर उसकी रानी शिवा देवी को लगी।
स्वामी! इस तरह सिंध जाकर चुपचाप स्वर्णगुलिका को लेकर आना क्षत्रिय धर्म के योग्य नहीं / है। फिर वह तो मेरी छोटी/ बहिन की दासी है।
महारानी! हम जिसको प्राप्त करने का निश्चय कर लेते हैं। उसको पाकर ही रहते हैं। अतः आप हमारे कार्य में विघ्न न डालें।
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इतना कहकर चण्डप्रद्योत वहाँ से चल दिया। उसी रात चण्डप्रद्योत ने अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों को साथ लिया और अनलगिरि हाथी पर बैठकर सिंध की तरफ चल पड़ा/गाय
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