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क्षमादान
दूत उज्जयिनी पहुँचकर चण्डप्रद्योत को राजा उदायन को संदेश सुनाता है।
महाराज, हमारे स्वामी महाराज उदयन ने कहलाया है कि आपका यह आचरण क्षत्रिय धर्म के योग्य नहीं है। आप तुरन्त स्वर्णगुलिका दासी को सम्मानपूर्वक वापस करके महाराज से क्षमायाचना कीजिए।
महाराज! आप और राजा उदायन परस्पर रिश्तेदार हैं और एक दासी के लिए रिश्तेदारों में युद्ध के नगाड़े बजाना, हजारों क्षत्रियों का खून बहाना क्या आप उचित समझते हैं?
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चण्डप्रद्योत गर्वित स्वर
में दूत से बोला
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चण्डप्रद्योत को जो वस्तु अच्छी लगती है उसे वह चाहे जैसे, चाहे जहाँ से प्राप्त कर लेता है। लाई हुई वस्तु को लौटाना चण्डप्रद्योत नहीं जानता
उचित अनुचित का फैसला तो क्षत्रिय की तलवार करती हैं। अपने महाराज से कह दो, स्वर्णगुलिका से इतना ही प्यार है तो आ जायें और हमसे छीनकर ले जायें।
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