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क्षमादान एक बार उन्जयिनी में किसी असुर का उपद्रव हुआ। नगर के मुख्य बाजार में अचानक आग लग गई। धू-धू कर दुकानें जलने लगीं। हाथियों की सूंड़ में भरकर खूब पानी फेंका गया, बालू फेंकी गई परन्तु आग शान्त नहीं हुई।
तब महारानी ने राजमहल के गवाक्ष में खड़े होकर णमोकार मंत्र का दिव्य जल अग्नि पर फैंकाRIC
मैं अग्निदेव को साक्षी मानकर कहती हूँ मेरा ODIOON
OOD.
DOO (शील धर्म अखण्ड है, तो इस णमोकार मंत्र के
दिव्य जल से अग्नि शान्त हो जाये।
तुरन्त अग्नि शान्त हो गई।
दूसरा आकर्षण है लोहनंघ दूत। यह दूत एक दिन में पच्चीस योजन चलकर तय कर सकता है।
न की दूरी
एक बार शत्रु राजा ने इस दूत को पकड़कर अपने सैनिकों द्वारा इसकी जांघों पर लोहे की गदाओं से प्रहार करवाया।
* पच्चीस योजन = सौ कोस = लगभग दौ सौ पचास किलोमीटर Jain Education international
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