________________ अनित्य भावना MAR जीवन एवं धन अंजलि जल के समान अस्थिर है। 24अनित्य भावनाः नश्वरता का बोध हे आत्मन् ! विचार कर; जिस प्रकार खिला हुआ फूल मुा जाता है, अंजलि का जल बूंद-बूंद टपक कर समाप्त हो जाता है। संध्या की लाली अन्धेरे में बदल जाती है। इसी प्रकार यह बचपन, यौवन, शरीर की सुन्दरता, सत्ता और संपत्ति आदि सब कुछ अस्थिर एवं नाशवान है। तू इनसे ममत्व हटा, अविनाशी आत्मा का ध्यान कर ! Jain Education International For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org