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चण्डप्रद्योत ने सोचा
हूँ ! जरूर इसमें भी कोई चाल है। आज मेरे अकेले के लिए भोजन बन रहा है। जरूर इसमें विष मिलाकर मुझे खिलाना चाहते हैं।
दाम पात
राजा उदायन ने सायंकाल संवत्सरी प्रतिक्रमण किया। चार गति चौरासी लाख जीवयोनियों से क्षमापना करके प्रसन्न मन से वे उठे और बन्दी खाने में चण्डप्रद्योत के पास आये। और बोले
संवत्सरी पर्व के प्रसंग पर मैं आप से भी क्षमापना करता हूँ। राजनीति की मजबूरी के कारण आपको जो भी कष्ट पहुँचा हो |इसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ।
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क्षमादान
पती
चण्डप्रद्योत रसोइये से बोला
जब महाराज उदायन का उपवास है तो हम भी आज उपवास करेंगे।
ठास 57
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इस सुनहरे मौके को चण्डप्रद्योत कैसे हाथ से निकलने देता-वह व्यंग्य पूर्वक उदायन से बोला
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पती
वाह कैसा विचित्र है यह धर्म का ढोंग । कैसी है यह क्षमापना -? एक तरफ तो
हमें बन्दी बनाकर अपमान और पराधीनता की आग में तिल-तिल जला रहे हो। दूसरी तरफ मेत्ती मे सव्व भूएसु का पाठ बोलकर मित्रता का नाटक कर रहे हो?
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