Book Title: Kshamadan Diwakar Chitrakatha 001
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 10
________________ क्षमादान श्रेष्ठी धर्मसार को राजकीय सम्मान के साथ हमारे अतिथि। गृह में ठहराया जाय। ELECIAL महारानी प्रभावती ने अपनी विश्वस्त परिचारिका कुब्जा को बुलवाकर कहा कुब्जा! श्रेष्ठी धर्मसार हमारे स्वधर्मि-बन्धु हैं अतः इनके अतिथि सत्कार में कोई कमी नहीं रहे। ७८०.०.७ सब व्यापारी अपना माल बेचकर|| एक रात्रि अचानक धर्मसार को अतिसार रोग हो गया, राज वैद्य को मगध देश वापस चले गये परन्तु तुरन्त बुलाया गया। राज वैद्य ने धर्मसार को औषधि आदि दी। धर्मसार महाराज के विशेष आग्रह पर | कुब्जा ने बड़ी सावधानी और लगन के साथ धर्मसार की सेवा की। कुछ दिन और रुक गया। कुब्जा की सेवा भावना से श्रेष्ठी धर्मसार बहुत प्रभावित हुआ। स्वस्थ होने पर धर्मसार ने कुब्जा से कहा कुब्जा! तू नाम व देह से कुब्जा है परन्तु तेरा मन बड़ा विराट है। संसार में कुछ व्यक्ति उस फूल के समान होते हैं जो देखने में तो सुन्दर नहीं लगते, परन्तु अपनी सुगन्ध से सबका मन मोह लेते हैं। सचमुच तू ऐसा ही फूल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only Dowww.jainelibrary.org,

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