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क्षमादान लोहे की गदायें चूर-चूर हो गई परन्तु तीसरी दिव्य वस्तु है अग्नि भीक स्थ। किसी विद्याधर उसका बाल-बाँका भी नहीं हुआ। तब से की युद्ध में सहायता करने के कारण प्रसन्न होकर उसने इस दूत का नाम लोहगंध प्रसिद्ध हो गया। महाराज प्रद्योत को यह स्वर्ण
रथ भेंट किया था।
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एक बार युद्ध में शत्रुओं ने अग्नि बाण द्वारा चारों तरफ अग्नि वर्षा प्रारम्भ कर दी। परन्तु अग्नि बाणों के बीच रथ ऐसे दौड़ता चला गया । जैसे खाली मैदान में दौड़-रहा हो।
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चौथा आश्चर्य है अनलगिरि हाथी। हाथी क्या है कृष्ण पर्वत का टुकड़ा जैसा है। उसके शरीर से झरते मद की। गंध के कारण आस-पास विचर रहे हाथियों का मद उतर जाता है और वह सुस्त हो जाते हैं।
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