Book Title: Kshamadan Diwakar Chitrakatha 001
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 27
________________ क्षमादान दोनों के बीच घमासान युद्ध चालू हो गया। उदायन के सैनिकों ने चण्डप्रद्योत को चारों ओर से घेर लिया। घनघोर युद्ध के पश्चात् राजा उदायन ने चण्डप्रद्योत को पराजित कर बन्दी बना लिया। अहंकारी चण्डप्रद्योत ने उदायन से कहा बन्दी बनाकर चण्डप्रद्योत को उदायन के सामने लाया गया। राजा चण्डप्रद्योत! मुझे तुम्हारे राज्य का लोभ नहीं है। तुम बस अपने अपराध की क्षमा माँग लो और स्वर्णगुलिका दासी को सम्मानपूर्वक मुझे 800 वापस लौटा दो। मैं तुम्हारा जीता हुआ राज्य वापस कर सकता हूँ। (क्षत्रिय की गर्दन टूट सकती है झुक) नहीं सकती। मैं अपने किये पर पश्चात्ताप नहीं किया करता। R 25 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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