Book Title: Kshamadan Diwakar Chitrakatha 001
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 18
________________ क्षमादान. व्यापारियों के जाने के बाद चण्डप्रद्योत ने अपने दूत लोहनंघ दूत वायु गति से सिंध पहुँचा और लोहनंघ को बुलवाया और अपना संदेश लेकर राजमहल के बगीचे में छुपकर स्वर्णगुलिका के स्वर्णगुलिका के पास सिंध भेजा। आगमन की प्रतीक्षा करने लगा। स्वर्णगुलिका लोहगंध तुम सिंध जाकर प्रातःकाल बगीचे में पूजा के लिए फूल लेने आई। वहाँ स्वर्णगुलिका नामक रूपसी M को हमारा प्रेम संदेश दो हम यह अद्वितीय सुन्दरी अवश्य उससे अपने महलों की शोभा ही स्वर्णगुलिका है। बढ़ाना चाहते हैं। जब स्वर्णगुलिका उसके करीब आई तो उज्जयिनी की भावी रानी को मेरा) REE प्रणाम! F मैं उन्नयिनी नरेश का दूत हूँ लोहगंध महाराज ने आपके लिए यह संदेश भेजा है। वाह! मेरी तो तकदीर raचमक गई। तुम कौन हो? और यह क्या कह रहे हो एप्पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www

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