________________
सम्पादकीय
जैन दर्शन सूक्ष्म और गहन है तथा मूल सिद्धांत ग्रंथो में इसका कमबद्ध तथा विषयानुक्रम विवेचन नहीं होने के कारण इसके अध्ययन में तथा इसके समझने में कठिनाई होती है । अनेक विषयों के विवेचन अपूर्ण-अधुरे हैं, अतः अनेक स्थल इस कारण से भी समझ में नहीं आते हैं । अर्थवोध की इस दुर्गमता के कारण जैन अजैन दोनों प्रकार के विद्वान जैन दर्शन के अध्ययन से सकुचाते हैं। क्रमबद्ध तथा विषयानुक्रम विवेचन का अभाव जैन दर्शन के अध्ययन में सबसे बड़ी बाधा उपस्थित करता है-ऐसा हमारा अनुभव है।
अध्ययन को बाधा मिटाने के लिए हमने जैन विषय-कोश की एक परिकल्पना बनायी और उस परिकल्पना के अनुसार समग्र आगम ग्रंथों का अध्ययन किया और उस अध्ययन के आधार पर सर्व प्रथम हमने विशिष्ट पारिभाषिक, दार्शनिक तथा आध्यात्मिक विषयों की एक सूची बनाई। विषयों की संख्या १००० से भी अधिक हो गई तथा इन विषयों का सम्यक् वर्गीकरण करने के लिए हमने आधुनिक सार्वभौमिक दशमलव वर्गीकरण का अध्ययन किया। तत्पश्चात् बहुत कुछ इसी पद्धति का अनुसरण करते हुए हमने सम्पुर्ण वाङ्मय को १०० रगों में विभक्त करके मूल विषयों के वर्गीकरण की एक रूपरेखा (देखें पृ० १३ ) तैयार की। यह रूपरेखा कोई अन्तिम नहीं है । परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा संशोधन की अपेक्षा भी इसमें रह सकती है । मुल विषयों से भी अनेक उपविषयों की सूची भी हमने तैयार की है। उनमें से जीव परिणाम ( मूल विषयांक ०४ ) की उपविषय सूची लेश्याकोश में दी गई है। जीव परिणाम की वह उपसूची भी परिवर्तन, परिवर्तन व संशोधन की अपेक्षा रख सकती है।
'क्रिया' शब्द का आगम में दो भावों में व्यवहार हुआ है एक कर्मवाद ( जैन वाङ्मय का दशमलव वर्गीकरण संख्या १२) के अन्तर्गत 'कर्मबन्धनिबन्धभूता' के अर्थ में तथा दूसरा कियाबाद (जैन वाङ्मय का दशमलव वर्गीकरण संख्या १३ ) के अन्तर्गत ( मोक्षमार्गवाहका ) अर्थ में व्यवहार हुआ है। हमने कर्मवाद के उपविषयों की सूची तथा क्रियावाद के उपविषयों को सूचो अलग-अलग दी है (देखें पृ० १७-१८)। इन सूचियों में भी परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा संशोधन की अपेक्षा रह सकती है। कर्मवाद में 'क्रिया' शब्द विषयांक १२२२ है तथा क्रियावाद में सदनुष्ठान क्रिया शब्द विषयांक १३०१ है। विद्वदूर्ग से निवेदन है कि वे इन विषय-सूचियों का गहरा अध्ययन करें तथा इनमें
[ 9 ]
"Aho Shrutgyanam"