Book Title: Kriya kosha
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ प्रकाशकीय श्रद्धेय मोहनलालजी बाँठिया ने, अपने अनुभवों से प्रेरित होकर, एक जैन-विषयकोश की परिकल्पना प्रस्तुत की तथा श्रीचन्दजी चोरड़िया के सहयोग से, प्रमुख आगम ग्रन्थों का मंथन करके, एक विषय सूची प्रणीत की। फिर उस विषय सूची के आधार पर जैन आगमों से विषयानुसार पाठ संकलन करने प्रारम्भ किये। यह संकलन उन्होंने प्रकाशित आगमों की प्रत्तियों से कतरन-विधि से किया । इस प्रकार प्रायः १००० विषयों पर पाठ संकलित हो चुके हैं। गृहीत पुस्तकों से संकलन समाप्त हो जाने के बाद उन्होंने 'नारक जीव' संबंधी पाठों का सम्पादन प्रारंभ किया। लेकिन हम कुछ मित्रों ने उनसे अनुरोध किया कि वे इस विषय को सर्व प्रथम ग्रहण नहीं करें । बन्धुओं के अनुरोध को मानकर उन्होंने 'नारक जीव' विषय को छोड़कर जैन दर्शन के रहस्यात्मक 'लेश्या' विषय को चयन किया और उसके ऊपर संकलित पाठों का सम्पादन कर 'लेश्या कोश' नामक पुस्तक स्वयं ही प्रकाशित की । यह 'लेश्या कोश' विद्वद्वर्ग द्वारा जितना समाहत हुआ है तथा जैन दर्शन और वाड्मय के अध्ययन के लिए जिस रूप में इसको अपरिहार्य बताया गया है और पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा के रूप में जिस तरह मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की गयी है, यही उसकी उपयोगिता तथा सार्वजनीनता को आलोकित करने में सक्षम है । श्री मोहनलालजी बाँठिया के जैनागम एवं वाङ्मय के तलस्पर्शी गम्भीर अध्ययन द्वारा प्रसूत कोश परिकल्पना को क्रियान्वित करने तथा उनके सत्कर्म और अध्यवसाय के प्रति समुचित सम्मान प्रकट करने की पुनीत भावनावश जैन दर्शन समिति की संस्थापना महावीर जयन्ती १६६६ के दिन की गई है। इस नवगठित संस्था ने वर्तमान में बाँठियाजी द्वारा संकलित और वर्गीकृत कोशों का प्रकाशन कार्य अपने हाथ में ग्रहण कर लिया है । यह क्रम निरन्तर गतिशील रहे इसकी पूर्ण चेष्टा की जा रही है । इसी प्रयास स्वरूप क्रिया-कोश आपके समक्ष प्रस्तुत है ! मैं यह भी उल्लेख करना चाहूँगा कि श्री बाँठियाजी के इस प्रयत्न और प्रयास में सक्रिय सहयोग कर रहे हैं श्री श्रीचन्द चोरड़िया । श्री चोरड़िया एक नवोदित और तरुण जैन विद्वान हैं, जिनकी अभिरूचि इस दिशा में श्लाघ्य है । जैन दर्शन समिति ने कोश प्रकाशन की योजना को किसी तरह की लाभवृत्ति या उपार्जन के लिए हाथ में नहीं लिया है, अपितु इसका पावन उद्देश्य एक अभाव की पूर्ति [ 7 ] "Aho Shrutgyanam"

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 428