Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Vibhar Mahakavi, Virendra Varma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

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Page 16
________________ भूमिका और अलंकार-संनिवेश को प्रधानता दी गई है। इस शैली के कारण भारवि इत्यादि इन महाकाव्यकारों के काव्य क्लिष्ट हो गए हैं तथा भावपक्ष (हृदयपक्ष) की अप्रधानता और कलापक्ष की प्रधानता हो गई है। किरातार्जुनीय. १।३ में भारवि ने भाषण के तीन गुणों को बतलाया है (१) शब्दसौन्दर्य-हृदय के भावों को अभिव्यक्त (प्रगट) करने में समर्थ सुन्दर शब्दों का प्रयोग (२) अर्थगाम्भीर्य-अर्य की गम्भीरता अर्थात् अनावश्यक शब्दों का अभाव-थोड़े शब्दों से अधिक कहना (३) अर्थविनिश्चय-प्रामाणिक सन्देहरहित कथन । वस्तुतः यहाँ भार व ने काव्य-रचना की शैली के गुणों की ओर संकेत किया है । भारवि की शैली में ये तीनों गुण विद्यमान हैं। भारवि की लेखनशैली वैदर्भी और गौड़ी शैलियों का सम्मिश्रण है । भारवि में कालिदास की वैदर्भी शैली की सरलता, स्वाभाविकता और कोमलता नहीं 'पायी जाती। दूसरी ओर माव की समास-बहुला धीर और गम्भीर गौड़ी शैली का भी वे आश्रय नहीं लेते। अपनी सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति के द्वारा उन्होंने वर्ण्य विषय का प्रसङ्ग के अनुसार सुन्दर वर्णन किया है । अलंकार तथा कलावादिता-अलंकारों के प्रयोग में भारवि बड़े कुशल हैं। अलंकारों के बहुल प्रयोग के द्वारा उन्होंने अपने काव्य को अलंकृत करने का चड़ा प्रयत्न किया है। उपमा, रूपक; उत्प्रेक्षा, समासोक्ति, निदर्शना, काव्यलिंग, अर्थान्तरन्यास इत्यादि अर्थालंकारों का तथा यमक और श्लेष इत्यादि शब्दालंकारों का प्रयोग भारवि ने बड़ी कुशलता के साथ किया है। किन्तु कई स्थलों पर भारवि अनावश्यक अलंकार-प्रियता का भी प्रदर्शन करते हैं। इस प्रकार उन्होंने अत्यन्त श्रमसाध्य चित्र-काव्य के लिखने का प्रयत्न किया है। इससे उनके काव्य में कृत्रिमता आ गई है। इस प्रकार एक पद्य में पहली और तीसरी तथा दूसरी और चौथी पंक्तियाँ समान हैं ; एक दूसरे पद्य मे चारो पंक्तियाँ समान हैं। कुछ पद्यों में प्रत्येक पंक्ति उल्टी तरफ से ठीक उसी प्रकार पढ़ी जाती है जैसे आगे वाली पंक्ति,-या पूरा पद्य ही उल्टा पढ़ा जाने पर अगले पद्य के समान ही हो जाता है; कुछ पद्य चाहे वे सीधे पढ़े जाये या उल्टे समान ही रहते हैं

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