Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Vibhar Mahakavi, Virendra Varma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

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Page 22
________________ प्रथम सर्ग की कथा उन्मत्त हाथी पुष्प-माला को फेंक देता है। वे मूर्ख लोग सर्वदा पराजय को प्राप्त करते हैं जो कपटाचारियों के प्रति कपट का व्यवहार नहीं करते हैं। धूर्त लोग सरल एवं निष्कपट लोगों के रहस्य को जानकर उन्हें विनष्ट कर डालते हैं। आपने अपनी पत्नी का और राजलक्ष्मी का शत्रुओं (कौरवों) के द्वारा अपहरण कराया। संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा कुकृन्य नहीं कर सकता है । इस आपत्ति-काल में मनस्त्री-जनों के द्वारा निन्दित मार्ग में चलते हुए आपको क्रोधाग्नि जग क्यों नहीं डालती ? प्रागी स्वयं ही उस व्यक्ति के वश में हो जाते हैं, जिसका क्रोध व्यर्थ नहीं होता है। क्रोध-रहित व्यक्ति के मित्र उमका सम्मान नहीं करते और शत्रु उससे डरते नहीं। विशाल रथ में बैठकर चलने वाला भीम अब धूलि से व्यान होकर पैदल पर्वतों में भटक रहा है। इन्द्र के समान पराक्रमी अर्जुन की शक्ति का दुरुपयोग वृक्षों से वल्कल लाने में हो रहा है। वन भूमि पर सोने से कठोर शरीर वाले तथा चारों ओर केशों से भरे हुए नकुल और सहदेव दो पहाड़ी हाथियों की तरह इधर-उधर घूम रहे हैं। इन सब की दुर्दशा को देखकर क्या आपके मन को कष्ट नहीं होता है ? आप अपने संयम और धैर्य को छोड़ने के लिए तैयार क्यों नहीं होते हैं ? आपकी बुद्धि ऐसी क्यों हुई यह तो मैं नहीं जानती क्योंकि प्राणियों की मनोवृत्तियाँ भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं। किन्तु आपकी विपत्ति को देखकर मेरा हृदय विदीर्ण हुआ जा रहा है। पहले बहुमूल्य शय्या पर सोये हुए जो आप स्तुतिपरक मांगलिक गन्दों से जगाये जाते थे, वही आप अब कुशों से परिव्याप्त भूमि पर शयन करके शृगालियों के अशुभ शब्दों से जागते हैं। इधरउधर भटकते रहने से तथा यथेष्ट भोजन के अभाव में आपका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया है। दानादि के अभाव में आपका यश भी अत्यन्य क्षीण हो गया है। मणिमय पाद-पीठ पर विद्यमान रहने वाले आपके जिन चरणों को सामन्त राजाओं के सिर पर स्थित पुष्प-मालाओं का पराग रंग देता था, वही आपके चरण अब कष्टप्रद कुश-काननों में भटकते रहते हैं। यतः आप और हम सब लोगों की यह दुर्दशा शत्रुओं के कारण है (भाग्य के कारण नहीं), अतः मुझे अत्यधिक व्यथित कर रही है। शान्ति को छोड़कर शत्रुओं के

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