Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Vibhar Mahakavi, Virendra Varma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

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Page 32
________________ प्रथमः सर्गः स०-भुवं बिभर्ति इति भूभृत्, तस्य भूभृतः ( उपपदसमास)। सौष्ठवं (सुष्टुभावः) च औदार्य (उदारस्य भावः ) च सौष्ठवौदायें (द्वन्द्व), तयोः विशेषः सौष्ठवौदार्यविशेषः (तत्पु०), (अथवा-सौष्ठवौदार्ये एव विशेषः इति सौष्ठवौदार्यविशेषः-कर्मधारय )। तेन शालते इति सौष्ठवौदार्यशालिनी ताम् ( उपपदसमास ) । विशेषेण निश्चितः इति विनिश्चित: (प्रादितत्पुरुष), विनिश्चितः अर्थः यस्याः सा विनिश्चितार्था ताम् (बहुव्रीहि )। व्या० विघाताय–वि+ हन्+घञ्; 'तुमर्थाच्च भाववचनात्' सूत्र से चतुर्थी विभक्ति । विधातुम्-वि+धा+तुमुन् । इच्छतः-इष+शत+ षष्ठी एकवचन । अधिगम्य-अधि+गम+ ल्यप । आददे-आ+दा+लिट् । टि-(१) दुर्योधन इत्यादि कौरवों के विनाश के लिए युधिष्ठिर प्रयत्न करना चाहते हैं-इस तथ्य का पता तो इससे ही चलता है कि उन्होंने दुर्योधन की प्रजापालननीति जानने के लिए गुप्तचर को हस्तिनापुर भेजा । (२) यद्यपि सत्य कहना गुप्तचर का परम आवश्यक कर्तव्य है तथापि राजा के सम्मुख कटु सत्य कहना गुप्तचर के लिए भयानक हो सकता है। यही कारण है कि गुप्तचर ने युधिष्ठिर से कटु सत्य कहने की अनुमति ले ली। (३) यहाँ भाषण के तीन गुणों को बतलाया गया है। (क) शब्दसौन्दर्य हृदय के भावों को अभिव्यक्त (प्रगट) करने में समर्थ सुन्दर शब्दों का प्रयोग (ख) अर्थगाम्भीर्य-अर्थ की गम्भीरता अर्थात् अनावश्यक शब्दों का अभाव-थोड़े शब्दों से अधिक कहना। (ग) अर्थविनिश्चय-प्रामाणिक सन्देहरहित कथन । उपर्युक्त के द्वारा महाकवि ने. काव्य-रचना की शैली के गुणों की ओर संकेत किया है। भारवि की शैली में ये तीनों गुण विद्यमान हैं । (४) तकार और वफार की आवृत्ति होने सेः 'वृत्यनुप्रास' अलंकार है। घण्टापथ:-द्विषामिति । स वनेचरो द्विषां शत्रूणाम् । कर्मणि षष्ठी। विघाताय विहन्तुमित्यर्थः । 'तुमर्थाच्च भाववचनात्' इति चतुर्थी । 'भाववचनाच्च' इति तुमर्थे घञ् प्रत्ययः । अत्र तादर्थ्यमपि न दोषः । तथापि प्रयोग--

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