Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Vibhar Mahakavi, Virendra Varma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

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Page 41
________________ किरातार्जुनीयम् भूमि (पृथ्वी) को, राज्य को। नयेन = नीति द्वारा । जेतुं समीहते = जीतना ( वश में करना) चाहता है, जीतने की अभिलाषा करता है, जीतने का प्रयास करता है। __ अनु०-राजसिंहासन पर स्थित (आरुढ, प्रतिष्ठित) होता हुआ भी दुर्योधन वन में निवास करने वाले (वन में रहने वाले, राज्यभ्रष्ट) आप से पराजय की शङ्का करता हुआ द्यूतक्रीडा (जुए) के बहाने (कपट, छल) से जीती हुई पृथ्वी (राज्य) को अब नीति से जीतना चाहता है (नीति से जीतने का प्रयास कर रहा है, अभिलाषा कर रहा है)। ___ सं० व्या०-धृतराष्ट्रत्य ज्येष्ठपुत्रः दुर्योधनः यद्यपि अधुना राजसिंहासनारूढः वर्तते, सर्वाधिकारसम्पन्नोऽयं सर्वविधं सुखमनुभवति तथापि वनवासिनः भवतः ( युधिष्ठरात् ) सः पराजयं विशङ्कते। वनवासस्य अवधिः यदा समाप्ति गमिष्यति तदा भवान् (युधिष्ठिरः) स्वकीयं राज्यं पुनर्ग्रहीष्यति इति मनसि कृत्वा सः चिन्तित: (चिन्ताकुलः) वर्तते । अतएव पुरा द्यूतछलेन लब्धां महीम् (राज्यम् ) इदानीं स: सुनीत्या प्रजापालनेन वशीकतु यतते। स०-सुखेन युध्यते इति सुयोधनः । नृपस्य आसने तिष्ठतीति नृपासनस्थ: (तत्पु०, उपपद समास)। वनम् अधिवसतीति वनाधिवासी तस्मात् ( उपपद समास)। दुष्टमुदरं यत्य तत् दुरोदरम् (बहु०), तस्य छम दुरोदरछद्म (तत्पु०), दुरोदरछद्मना जिंतां दुरोदरछाजिताम् (तत्पु०)। व्या०-वनाधिवासिनः-वन + अधि+ वस् + णिनिः । विशङ्कमान:वि+शङ्क+शानच् । समीहते-सम् + इ + लट् , अन्यपुरुष, एकवचन । वनाधिवासिनः और भवतः में पञ्चमी 'भीत्रार्थनां भयहेतुः' सूत्र से हुई। टि०-(१) द्यूतक्रीड़ा के छल से प्राप्त राज्य को दुर्योधन किस प्रकार स्थायी रूप से अपने अधीन करना चाहता है-इस प्रयोजन की सिद्धि के लिए वह फिन-किन उपायों को कर रहा है यह गुमचर किरात इस श्लोक से कहना प्रारम्भ करता है। प्रस्तुत श्लोक में दुर्योधन की सावधानी और चतुरता का प्रतिपादन किया गया है। राज्य प्राप्त करके भी दुर्योधन चुपचाप नहीं

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