Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Vibhar Mahakavi, Virendra Varma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ प्रथमः सर्गः है। (ख) दूसरों (शत्रुओं) में भेद डालकर अपने पक्ष में कर लेने वाले । यह अर्थ प्रसङ्ग के अधिक अनुकूल है। पूर्ववर्ती श्लोकों में साम, दान और दण्ड का निरूपण करके इस श्लोक में दुर्योधन की भेद-नीति का निरूपण किया गया है। दुर्योधन के व्यक्ति शत्रुओं में भेद (फूट) उत्पन्न करके उनको अपने अधिकार में कर लेते हैं-भेद-नीति के द्वारा वे शत्रु-पक्ष को निर्बल बना देते हैं। (२) दुर्योधन के कर्मचारी अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी उसके कार्यों को सम्पादित करना चाहते हैं। इसका कारण यह है कि कार्यों के पूर्ण हो जाने पर वह अपने सेवकों को पारितोपिक के रूप में प्रभूत धन प्रदान करता है। (३) रेफ और तकार की अनेक बार आवृत्ति होने से 'वृत्यनुप्रास' अलंकार है। घण्टापथ-विधायेति । शंका सञ्जातास्य शंकितोऽविश्वस्तः सन् | परितः सर्वत्र स्वपरमंडले परेतरान् आत्मीयान् । अवञ्चकानिति यावत् । यद्वा परानितरयन्ति भेदेनात्मप्तात्कुर्वन्तीति परेतरान् । 'तत्करोतीति' ण्यन्तात्कर्मण्यण्प्रत्ययः । रक्षन्तीति रक्षान् रक्षकान् । मन्त्रगुप्तिसमर्थानित्यर्थः । 'नन्दिग्रही' त्यादिना पचाद्यच । विघाय कृत्वा । नियुज्येत्यर्थः । अशङ्किताकारम् उपैति स्वयमविश्वस्तोऽपि विश्वस्तवदेव व्यवहरन् परमुखेनैव परान् भिनत्तीत्यर्थः । न च तान् रक्षानुपेक्ष ने येन तेऽपि विकुर्वीरन्नित्याह-क्रियेति । क्रियापवर्गेपु कर्मसमाप्तिषु । अनुजीविसात्कृता भृत्याधीनाः कृताः । अपगवर्तितया दत्ता इत्यर्थः । 'दये त्राच' इति सातिप्रत्ययः । सम्पदः अस्य राज्ञः कृतज्ञताम् उपकारित्वं वदन्ति । प्रीतिदानैरेवास्य कृतज्ञस्वं प्रकाश्यते, न तु वाङ्मात्रेणेत्यर्थः । कृतज्ञ राननि अनुजीविनोऽनुरज्यन्तेऽनुरक्ताश्च तं रक्षन्तीति भावः ॥ १४ ॥ अनारतं तेन पदेषु लम्भिता विभज्य सम्यग्विनियोगसत्क्रियाः। फलन्त्युपायाः परिवृहितायतीरुपेत्य संघर्पमिवार्थसम्पदः ॥१५॥ अ०-तेन पदेषु विभज्य लम्भिताः सम्यग्विनियोगसत्क्रिया उपायाः संघर्पम् उपेत्य इव परिवृहितायती: अर्थसम्पदः अनारतं फलन्ति । श-तेन-उस ( दुर्योधन ) के द्वारा। पदेषु-उचित पदों (स्थानों या व्यक्तियों) में, उपादेय वस्तुओं में। विभज्य-विभाग (विभाजन) करके ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126