Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Vibhar Mahakavi, Virendra Varma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

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Page 69
________________ किरातार्जुनीयम् स्वामिकार्यविघातकतया स्वामिद्रोहिणः स्युरित्युभयत्रापि तात्पर्यार्थः । धनुर्मृतो धानुष्काः । आयुधीयमात्रोपलक्षणमेतत् । प्राधान्याद्धनुर्ग्रहणम् । तस्य दुर्योधस्य असुभिः प्राणैः प्रियाणि समीहितुं कर्तुं वाञ्छन्ति । आनृण्यार्थं प्राणान्दातु मिच्छन्ति । अन्यथा दोषस्मरण दिति भावः । अत्र महौजसादिपदार्थानां प्राणदान कर्तव्यतां प्रति विशेषणगत्या हेतुत्वाभिधानात् काव्यलिङ्गमलङ्कारः । लक्षणं तूक्तम् । तथा साभिप्रायविशेषणत्वात् परिकरालङ्कार इति द्वयोस्तिलतण्डुलवद विभक्तया स्फुरणात् संसृष्टिः ॥ १६ ॥ ६६ महीभृतां सच्चरितैश्वरैः क्रियाः स वेद निःशेषमशेषितक्रियः । महोदयैस्तस्य हितानुबन्धिभिः प्रतीयते धातुरिवेहितं फलैः ॥२० अ०- - अशेषितक्रियः सः सच्चरितैः चरैः महीभृतां क्रियाः निःशेषं वेद । धातुः इव तस्य ईहितं महोदयैः हितानुबन्धिभिः फलैः प्रतीयते 1 महीभृतां = ( दूसरे ) 1 श० - अशेषितक्रियः = कार्यों को पूर्ण रूप से सम्पन्न ( समाप्त, पूरा ) करने वाला, कार्यों को फलप्राप्ति तक निरन्तर करते रहने वाला, कार्यों को अपूर्ण न छोड़ने वाला | सः = वह ( दुर्योधन ) । सच्चरितैः = शुद्ध चरित्र ( आचरण ) वाले । चरैः = गुप्तचरों के द्वारा । राजाओं की । क्रियाः = क्रियाओं ( कार्यों ) को । निःशेषं = पूर्ण रूप से, पूरी तरह से 1 वेद = जानता है। धातुः इव = विधाता ( स्रष्टा, परमेश्वर ) की तरह । तस्य = उस ( दुर्योधन ) की । ईहितं = अभीष्ट, चेष्टा, उद्योग । महोदयैः = अत्यधिक उत्कर्ष ( वृद्धि, समृद्धि, लाभ ) करने वाले । हितानुबन्धिभिः = हितकारक ( सुखकर, शुभ, कल्याणकारक, मांगलिक ) परिणाम ( पर्यवसान, अनुबन्ध ) वाले, परिणामसुखद ( परिणाम में सुख देने वाले ) । फलैः = फलों (परिणामों, कार्य-सिद्धियों) के द्वारा । प्रतीयते : = प्रतीत ( ज्ञात ) होता है, जाना जाता है । 1 अनु० - समस्त कार्यों को पूर्ण रूप से समाप्त ( पूरा ) करने वाला ( अथवा करके ) वह (दुर्योधन ) शुद्ध चरित्र (आचरण) वाले गुप्तचरों के द्वारा (दूसरे ) राजाओं के ( सम्पूर्ण ) कार्यों ( क्रियाओं, रहस्यों ) को

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