Book Title: Kiratarjuniyam
Author(s): Vibhar Mahakavi, Virendra Varma
Publisher: Jamuna Pathak Varanasi

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Page 39
________________ ३६ किरातार्जुनीयम् वाला, अत्यन्त रहस्यात्मक । नयवर्त्म = नीतिमार्ग राजनीति का मार्ग । यत् = जो । मया अवेदि = मेरे द्वारा जाना गया । अयं = यह । तक अनुभावः = आप ( राजा युधिष्ठिर ) का प्रभाव ( प्रताप, महिमा ) है । अनुवाद - स्वभाव से ही दुर्बोध ( कठिनता से जानने योग्य, समझने में कठिन ) राजाओं का चरित्र ( आचरण ) कहाँ ? ( और मेरे जैसे ) अज्ञानी ( अज्ञान से नष्ट हुई बुद्धि वाले ) पुरुष ( प्राणी ) कहाँ ( दोनों में महान् अन्तर है- - आकाश और पाताल का अन्तर है ) । शत्रुओं ( दुर्योधन इत्यादि कौरवों ) के अत्यन्त रहस्यपूर्ण राजनीति-मार्ग को जो मैं जान पाया यह आप ( राजा. युधिष्ठर ) का ही प्रभाव ( प्रताप ) है । सं० व्या०—अस्मिन् श्लोके राज्ञां चरित्रस्य दुर्ज्ञेयत्वं तथा गुप्तचरस्थ किरातस्य विनयशीलत्वं अभिमानराहित्यं च प्रतिपादितम् । राज्ञां ( महीपतीनां ) चरित्रं स्वभावादेव दुर्ज्ञेयं विद्यते । बुद्धिमन्तोऽपि जनाः राज्ञां चरित्रं ज्ञातुं न शक्नुवन्ति ( समर्थाः न भवन्ति ) । मादृशां सामान्यननानां तु कथैव का ! तथापि शत्रूणाम् अत्यन्तं रहस्यात्मको राजनीतिमार्गो यो मया ज्ञातः सः भवतः एव प्रभावः । भवतः प्रभावेणैव कटिनमपि एतत् कार्यं मया कृतम् । अत्र मम किञ्चिदपि सामर्थ्यं चातुर्य वा न विद्यते । 1 समासः - निसर्गेण दुर्बोधं निसर्गदुर्बोधम् ( तत्पु० ) । भुवः पतिः भूपतिः तेषाम् ( तत्पु० ) । न बोध: अबोध: ( नञ् समास ), अबोधेन विक्लवाः अबोधविक्लवाः ( तत्पु० ) । निगूढं तत्त्वं यस्य तत् निगूढतत्त्वम् (बहु० ) । नयस्य नयवर्त्म ( तत्पु० )1 व्या०-अवेदि-विद् + लुङ्, अन्यपुरुष, एकवचन, कर्मवाच्य । अनुभावः-अनु + भू+घञ । टि - " मैं आपके प्रभाव से ही शत्रु के भेद को जान पाया " इस कथन से गुनचर किरात की निरभिमानता ( अहंकार शून्यता) सूचति होती है । ( २ ) इस श्लोक से गुप्तचर की महती योग्यता का भी पता चलता है । वह शत्रुओं के अत्यन्त गुप्त रहस्यों को जानकर हस्तिनापुर से वापिस आया है ।

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