Book Title: Kharvel Author(s): Sadanand Agarwal, Shrinivas Udagata Publisher: Digambar Jain Samaj View full book textPage 8
________________ जब ओडिआ में खारवेळ पर शोध-संदर्भ लगभग तैयार हो गया और उसकी संपुष्ठि के लिए आवश्यक चित्र, वर्णलिपि, अभिलेख आदि के चित्र बन गये तब कटक में श्री शांति कुमार जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे जैनधर्मी हैं, सदाशय, कला-संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान हैं तथा श्री बाँगाल, बिहार, ओडिशा दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, कलकत्ता के प्रमुख कार्यकर्ताओं में से एक हैं। उन्होंने हिंदी में ही खारवेळ पर ग्रंथ प्रकाशित करने के सुझाव दिये । पर मेरे लिये हिंदी में इसकी रचना कर पाना आसान नहीं था। हर रचनात्मकता को वृहत्तम मंच मिले, श्री उद्गाता जी भी यही चाहते हैं। विविधता के रहते भारत एक है। इतिहास, संस्कृति, कला - मानस, सब कुछ आत्मीय स्तर पर एक ही हैं। धर्म - मत- निर्विशेष से सभी भारतीय एक-दूसरे को जाने पहचानें। यह सद्भावना अक्षर - भारती के आशीर्वाद ही से जागरित हो सकती है, और हर भारतीय भाषाओं के लिए हिंदी ही वह विस्तृत विचार मंच है जिसके जरिये भारत में भावनात्मक एकात्मता की प्रतिष्ठा हो पाएगी । अतः वे इस ग्रंथ को हिंदी में प्रस्तुत कर देने को सहर्ष तत्काल राजी हो गये, मुझे उनकी उस सदयता के कारण अपार संतोष भी प्राप्त हुआ और अब यह ग्रंथ आपके सामने है । मुझे श्री उद्गाताजी नित्य प्रेरित करते रहते हैं। अपनी सारस्वत साधना के क्षेत्र में मुझे जो भी सफलता मिली है वह उन्हीं से मिले प्रोत्साहन और मार्गदर्शन का फल है । चकित तो तब होना पड़ता है जब वे स्वयं पुस्तक को सुंदर बनाने के अभिप्राय से अलंकरण तक की ओर अनुराग से ध्यान देते हैं और मुझसे भी अधिक परिश्रम किया करते हैं । इस ग्रंथ में संयोजित सभी लिपि चित्रों का चित्रण मुझसे हुआ है । कहीं भी खारवेळकालीन अभिलेखों के स्पष्ट फोटोचित्र प्राप्त नहीं होते। अब शिलालेख के बहुलांश भी नष्ट हो चुके हैं। अत: एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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