Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
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मन्दिर / जिनालय भोगलिप्सा के साधन और जैन साधु मठाधीश या पण्डों के रूप में दृष्टिगत होते । शायद यह भी सम्भव था कि भारत
जैसे बौद्ध धर्म विलासिता, शिथिलता तथा उत्साहहीनता के कारण लुप्तप्रायः हुआ, वैसे ही जैन धर्म भी हो सकता था। पं० दशरथ शर्मा की यह मान्यता है कि खरतरगच्छ के आचार्यों का मैं तो सबसे बड़ा कार्य यह समझता हूँ कि राजविरोध, जन-विरोध श्रेष्ठिविरोध की कुछ परवाह न कर उन्होंने अनाचार एवं अनैक्य की जड़ पर कुठाराघात किया। उन्होंने जैन धर्म का मार्ग सर्व ज्ञातियों के लिए खोला, सबको समानाधिकार देकर ऐक्य सूत्र बांधने का प्रयत्न किया, मंदिरों में वेश्याओं के नाच को बन्द किया, रात्रि के समय मंदिरों में स्त्रीप्रवेश का निषेध किया और चैत्यादि का त्याग कर जिन शासन का पूर्णतया पालन किया और ब्राह्मण क्षत्रियादि को भी अहिंसा का उपदेश दिया । '
में
शिथिलाचार का उन्मूलन करने के लिए आचार्य जिनेश्वरसूरि, बुद्धिसागरसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि आदि के नाम उल्लेनीय हैं । खरतरगच्छ ज्ञानमूलक आचार को मुख्यता देता रहा है । अतः गच्छ में यदि कभी शिथिलाचार के दीमक लगे, तो गच्छ - स्थविर जागरूकतापूर्वक शिथिलाचार को समाप्त करते । यही कारण है कि अपनी आचार-परम्परा को निर्मल एवं पवित्र बनाये रखने के लिए खरतरगच्छाचार्यों ने समय-समय पर 'क्रियोद्धार' किया । सम्राट अकबर प्रतिबोधक आचार्य जिनचन्द्रसूरि द्वारा किया गया 'क्रियोद्धार' खरतरगच्छ की आचार - परम्परा को जीवन्त एवं विशुद्ध बनाने का महत्त्वपूर्ण कदम था। जिन चन्द्रसूरि द्वितीय जिनेश्वरसूरि थे। जिनेश्वरसूरि ने धर्म संघ में फैले शिथिलाचार को मिटाया तो जिनचन्द्रसूरि ने गच्छ में फैले शिथिलाचार को । आचार-मूलक शिथिलता खरतरगच्छ
१ युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि, प्रस्तावना, पृष्ठ – ३
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