Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh

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Page 250
________________ आचाय - पदारोहण के बाद माघ शुक्लपक्ष ६ के दिन जिनेश्वर ने सात व्यक्तियों को दीक्षा प्रदान की, जो यशः कलश, विजयरुचि, बुद्धिसागर, रत्नकीर्ति, तिलकप्रभ, रत्नप्रभ और अमरकीर्ति नाम से जाने जाते हैं। पश्चात् इन सातों मुनियों को गणि जैसे गौरव पूर्ण पद से विभूषित किया गया । जिनेश्वरसूरि श्रेष्ठि यशोधवल के साथ जाबालीपुर से भिन्न मालपुर गये। वहां उन्होंने ज्येष्ठ शुक्ल १२ के दिन श्रीविजय, हेमप्रभ, तिलकप्रभ, विवेकप्रभ को साधु- व्रत और चारित्रमाला, ज्ञानमाला, सत्यमाला को साध्वी व्रत प्रदान किया । इनमें चारित्रमाला और सत्यमाला को बाद में गणिनी पदारूढ किया गया पश्चात् श्रेष्ठि जगद्धर की प्रार्थना स्वीकार कर जिनेश्वरसूरि श्रीमाल नगर आये, जहाँ उन्होंने आषाढ़ शुक्ल दशमी को जगद्धर द्वारा निर्माणित समवशरण की प्रतिष्ठा करवाई तथा उसमें तीर्थंकर शान्तिनाथ की प्रतिमा स्थापित की गई । श्रीमालनगर से जिनेश्वरसूरि पुन: जाबालिपुर प्रत्यावर्तन किया । वहाँ उन्होंने जाबालिपुर में नूतन जिनालय की रचना भी प्रारम्भ करवाई। इसी नगर में ही वि० सं० १२७६ माघ शुक्ल पक्ष ५ के दिन उन्होंने अर्हदत्त, विवेकश्री, शीलमाला, चन्द्रमाला, विनयमाला को संयम मार्गारूढ़ किया । जिन्हें भविष्य में गणि और गणिनी पद से अभिषिक्त किया गया, क्योंकि इनके नामोल्लेख पदयुक्त प्राप्त होते हैं । जाबालिपुर से जिनेश्वरसूरि पुनः श्रीमालनगरं लौटे, जहाँ उन्होंने सं० १२८० माघ शुक्ल १२ के दिन भगवान् शान्तिनाथ के मन्दिर पर ध्वजारोपण किया और भगवान् ऋषभदेव, गौतमस्वामी, जिनपतिसूरि, मेघनाद, क्षेत्रपाल और पद्मावती देवी की मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई । इसके अतिरिक्त फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को कुमुदचन्द्र, कनकचन्द्र, पूर्ण श्री और हैमश्री की प्रव्रज्या हुई । इनमें पूर्णश्री और २२८

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