Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh

View full book text
Previous | Next

Page 253
________________ कलश, क्षमाचन्द्र, शीलरत्न, धर्मरत्न, चारित्ररत्न, गणि मेघकुमार, गणि अभयतिलक, श्रीकुमार, गणिनी शीलसुन्दरी, चन्दनसुन्दरी को विधीविधान पूर्वक दीक्षा देने के उल्लेख मिलते है। ज्येष्ठ कृष्णा द्वितीया रविवार को उन्होंने विजयदेव को आचार्य पद से विभूषित किया। सं० १२६४ में जिनेश्वरसूरि ने मुनि संघहित को उपाध्याय पद दिया। ___सं० १२६६, फाल्गुन कृष्णा पंचमी को प्रहलादनपुर में आपने प्रमोदमूर्ति, प्रबोधमूर्ति और देवमूर्ति को प्रव्रज्या प्रदान की और ज्येष्ठ शुक्ला दसमी को उसी नगर में भगवान शान्तिनाथ मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई। यह मूर्ति सम्प्रति पाटण में है। ___ सं० १२६७ में भी जिनेश्वरसूरि प्रहलादनपुर में ही 'प्रवासित थे। कारण, देवतिलक और धर्म तिलक इन दोनों की दीक्षा इसी वर्ष की चैत्र शुक्ला चतुर्दशी के दिन प्रहलादनपुर में हुई थी। __सं० १२६८ वैशाख शुक्ला एकादशी को जाबालिपुर में आपकी सान्निध्यता में महामन्त्री कुलधर ने जिनचैत्य में स्वर्णदण्ड ध्वजारोपण किया। यही कुलधर वैराग्यवासित होकर सं० १२६६, प्रथम आश्विन मास की द्वितीया को जिनेश्वरसूरि से दीक्षित हुआ। कुलधर का दीक्षावस्था का नाम मुनि कुलतिलक घोषित हुआ। दीक्षा-महोत्सव अनुपमेय रहा। वि० सं० १३०४, वैशाख शुक्ला १४ के दिन जिनेश्वरसूरि ने गणि विजयवर्धन को आचार्य पदारूढ़ किया, जिनका नाम परिवर्तित कर आचार्य जिनरत्नसूरि रखा गया। इस अवसर पर त्रिलोकरहित, जीवहित, धर्माकर, हर्षदत्त, संघप्रमोद, विवेकसमुद्र, देवगुरुभक्त, चारित्रगिरि, सर्वज्ञभक्त और त्रिलोकानन्द को संयममार्गारूढ़ किया। सं० १३०५, आषाढ़ शुक्ला १० को प्रहलादनपुर में जिनेश्वरसूरि २३१

Loading...

Page Navigation
1 ... 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266