Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh

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Page 244
________________ १७. महावीर स्तोत्र १८. महावीर स्तुति ___ समय-संकेत :-आचार्य जिनपतिसूरि का जन्म वि० सं० १२१० में तथा स्वर्गारोहण सं० १२७७ में हुआ था। वे ६७ वर्ष जीये। इस प्रकार जिनपतिसूरि तेरहवीं शदी के महान वादजयी सिद्ध होते हैं । महामनीषी उपाध्याय जिनपाल जिनपाल खरतरगच्छ के मूर्धन्य विद्वानों में एक हुए। वे एक तर्कवादी, सिद्धान्तज्ञाता और साहित्यकार थे। न्याय, अलंकार, काव्य आदि का इन्हें गहन ज्ञान था। इन्होंने 'सनत्कुमार चरित' जैसा श्रेष्ठ महाकाव्य रचकर साहित्य-जगत में महाकवि के रूप में कीर्ति प्राप्त की। इनकी चित्र-काव्य में विशेष रुचि थी। इन्होंने अनेक मुनियों को प्रशिक्षित किया। सुमति गणि ने इनकी प्रशंसा करते हुए लिखा है : नानातर्क वितर्ककर्ककशलसदवाणीकृपाणीस्पुरत् तेजः प्रौढतरप्रहार घटनानिष्विपष्टवादिवजाः॥ श्री जैनागमतत्तवमाविताधियः प्रीतिप्रसन्नाननाः सन्तु श्रीजिनपाल इत्यलमुपाध्यायाः क्षितौ विश्रुताः॥ जीवन-वृत्त :-उपाध्याय जिनपाल के गृहस्थ जीवन के बारे में प्रबन्धकारों ने कोई सूचना नहीं दी है। यद्यपि इन्होंने अपने साधुजीवन संबन्धी कतिपय उल्लेख तो किये हैं। गणि सुमति एवं स्वयं जिनपाल के उल्लेखानुसार जिनपाल के गुरु का नाम आचार्य जिनपतिसूरि था। इनकी दीक्षा सं० १२२५ में पुष्कर नगर में हुई थी। जिनपतिसूरि के शिष्य-समुदाय में जिनपाल प्रमुख थे। वि० सं० १२६९ में जाबालिपुर (जालोर) के विधिचैत्य में जिनपतिसूरि ने इन्हें २२१

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