Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh

View full book text
Previous | Next

Page 232
________________ वि० सं० १२१४ में सिंध देश के राजा गोशलसिंह भाटी ने जिनचन्द्रसूरि के प्रतिबोध से जैनत्व स्वीकार किया। जिनचन्द्र ने उनका महाजनवंश और आधरिया गोत्र स्थापित किया। गोशलसिंह के साथ १५०० घरों ने जैनधर्म अंगीकार किया था। वि० संवत् १२१७ में मेवाड़ के आघाट गांव में खीची राजा सूरदेव के पुत्र दूगड़-सुगड़ राज्य करते थे। इनके निवेदन पर मणिधारी जिनचन्द्रसूरि ने आघाटग्राम की प्रेत-बाधा मिटाई। द्गड़-सुगड़ मणिधारी से आत्यन्तिक प्रभावित हुए और उन्होंने जैनधर्म अंगीकार किया। उस समय सीसोदिया वैरीशाल ने भी श्रावक-व्रतों को स्वीकार किया। इनके वंशज सीसोदिया कहलाये। दूगड़ सुगड़ से दुगड़ सुगड़ गोत्र स्थापित हुआ। राजा के साथ जिन अन्य लोगों ने जैनीकरण स्वीकार किया, उनमें खेता से खेताणी गोत्र बना तथा कोठार में काम करनेवाले कोठारी प्रख्यात हुए। मेवाड़ के मोहीपुर के नरेश नारायणसिंह पमार के राज्य पर जब चौहानों ने आक्रमण किया तब नारायणसिंह के पुत्र गंगा ने स्वयं को परास्त होते देख आचार्य जिनचन्द्रसूरि की शरण ली। आचार्य गंगा को शरणागत समझ दैविक सहायता प्रदान की जिससे मोहीपुर नरेश की विजय हुई। राजा नारायणसिंह तथा उसके सोलह पुत्रों ने आचार्य से सम्यक्त्व मूल बारह व्रत स्वीकार किये। आचार्य के द्वारा जो शासन-प्रभावक कार्य निष्पन्न हुए उनमें नारायणसिंह का सक्रिय सहयोग रहा । राजा के सोलह पुत्र तथा उनके वंशजों के लिए आचार्य ने निम्न गोत्र स्थापित किये-गांग, पालावत, दुधेरिया, गोढ़, गिड़िया, बांभी, गोढ़वाड़, थराबना, खुरधा, पटवा, गोप, टोडरवाल, भाटिया, आलावत, मोहीवाल और वीरावत । छाजेड़ गोत्र के सम्बन्ध में "खरतरगच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिबोधित जैन जातियां व गौत्र”से यह सूचना प्राप्त होती है किस वियाणा २१०

Loading...

Page Navigation
1 ... 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266