Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
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प्रतिमा की स्थापना की । उक्त स्थान में ही नरचन्द्र, रामचन्द्र, पूर्णचन्द्र और विवेकश्री, मंगलपति कल्याणश्री, जिनश्री इन साधुसाध्वियों को दीक्षा प्रदान की और धर्मदेवी को प्रवर्त्तिनी पद से विभूषित किया। इस अवसर पर वागड़ देश से ठाकुर आभुल आदि प्रमुख श्रावक समुदाय भी आया था । लवणखेड़ा में ही सं० १२६५ में मुनि चन्द्रमणि, मानभद्र, सुन्दरमति और आसमति इन चार स्त्री-पुरुषों को मुनिव्रत में दीक्षित किया । सं० १२६६ में विक्रमपुर में भावदेव, जिनभद्र तथा विजयचन्द्र को श्रमण-व्रती बनाया, गुणशील को वाचनाचार्य पद दिया और ज्ञानश्री को दीक्षा देकर साध्वी बनाया । सं० १२६६ में जाबालीपुर में महामंत्री कुलधर द्वारा कारित महावीर प्रतिमा को विधि चैत्यालय में बड़े समारोह से स्थापित की। और गणि जिनपाल को आपने उपाध्याय पद दिया । प्रवर्त्तिनी धर्मदेवी को महत्तरा पद देकर प्रभावती नामान्तर किया । इसके अतिरिक्त महेन्द्र, गुणकीर्त्ति, मानदेव, चन्द्रश्री तथा केवलश्री इन पाँचों को दीक्षा देकर वे विक्रमपुर की ओर विहार कर गये ।
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प्राप्त उल्लेखानुसार जिनपतिसूरि " वागड़ " देश में गये थे । वहाँ दारिद्रेरक नाम के नगर में शताधिक श्रावक-श्राविकाओं को सम्यक्त्व मालारोपण, परिग्रह- परिमाण, दान, उपधान, उद्यापन आदि धार्मिक कार्यों में लगाया। इस उपलक्ष में सात नन्दियों की । सं० १२७१ में बृहद्वार नगर में आसराज राणक आदि मुख्य समाजनेताओं के साथ ठाकुर विजयसिंह द्वारा कारित विस्तारपूर्वक किये गये प्रवेशोत्सव के साथ प्रवेश हुआ और वहाँ मिथ्यादृष्टि गोत्र देवियों की पूजा आदि असंख्यक क्रिया को बन्द कराया ।
सं० १२७३ में भी जिनपतिसूरि बृहद्वार में थे । कारण, इस वर्ष उन्हीं की आज्ञा से उपाध्याय जिनपाल और पं० मनोदानन्द के बीच बृहद्वार में शास्त्रार्थ हुआ था ।
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